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________________ महाबंधे पदेसबंधा हियारे २४५. विभंगे पंचणा० - णवदंस० - मिच्छ० - सोलसक० भय-दु०-तिरिक्ख० पंचिंदि०ओरालि ० तेजा० क० - ओरा० अंगो० - वण्ण०४- तिरिक्खाणु० - अगु०४-तस०४ - णिमि०णीचा०- पंचंत० उ० ज० ए०, उ० बेसम० । अणु० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० दे० मणुसर्गादि०२ उक्क० ओघं । अणु० ज० ए०, उ० ऍकचीसं० दे० । सेसाणं जोगिभंगो । १५२ २४६. आभिणि-सुद-ओधि० पंचणा० छदंस० चदुसंज० - पुरिस०-भय-दु० - पंचिंदि०तेजा०-६० समचदु० वण्ण०४ - अगु०४ - पसत्थ० - तस ०४ - सुभग सुस्सर - आदें ० - णिमि०उच्चा० - पंचंत० उ० ज० ए०, उ० बेसम० । एवं सव्वाणं उक्क० । अणु० ज० ए०, उ० छावट्टिसाग० सादि० । सादासाद० चदुणोक० - दोआउ०- आहारदुग-थिरादितिण्णि ० अणु ० ज० ए०, उ० तो ० । अपच्चक्खाण ०४ - तित्थ० अणु० ज० ए०, उ० तैंतीसं० सादि० । पच्चक्खाण ०४ अणु० ज० ए०, उ० बादालीसं० सादि० । मणुस २४५. विभंगज्ञानमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, त्रस चतुष्क, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । मनुष्यगतिद्विकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका काल ओघके समान है । अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम इकतीस सागर है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है । विशेषार्थ — नरक में विभंगज्ञानका उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । इतने क तक पाँच ज्ञानावरणादिका निरन्तर बन्ध होता है, इसलिए यहाँ पाँच ज्ञानावरणादिके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर कहा है । नौवें ग्रैवेयकमें विभंगज्ञानका उत्कृष्ट काल कुछ कम इकतीस सागर है । इतने काल तक यहाँ मनुष्यगतिद्विकका निरन्तर बन्ध होता है, इसलिए यहाँ इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका उत्कृष्ट काल कुछ कम इकतीस सागर कहा है। शेष प्रकृतियाँ परावर्तमान हैं, इसलिए उनका भंग मनोयोगी जीवोंके समान जाननेकी 'सूचना है । २४६. आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, पचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य कल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । इसी प्रकार सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका काल है । अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक छयासठ सागर है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, दो आयु, आहारशरीरद्विक और स्थिर आदि तीन युगलके अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अप्रत्याख्यानावरण चार और तीर्थङ्कर प्रकृति के अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है । प्रत्याख्यानवरणचतुष्क के अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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