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________________ उत्तरपतिपदेसबंधे सामित्तं १३१ तित्थ० ज० मणुस० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । काऊए तित्थ० ज० प० क० १ अण्ण० णेरइ ० पढम०आहार० पढमतब्भव० तीसदि० सह सत्तवि० ज०. जो० । देवगदि०४ ज० मणुस० असंज० [ पढम आहार० पढम०तब्भव० ] एगुणतीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । २१९. तेउ० पंचणा०-सादासाद०-उच्चा०-पंचंत० ज०प० क० ? अण्ण० दुगदि० सम्मा० मिच्छा० पढम० आहार० पढम०तब्भव० सत्त वि० ज०जो० । णवदंस०मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-णीचा० ज० प० क.? अण्ण० देव० मिच्छा० पढम०. आहार० पढम०तब्भव० ज०जो० । दोआउ० देवभंगो। देवाउ० जह० दुगदि० सम्मा० मिच्छा० घोल. अट्ठविध० ज०जो० । तिरिक्ख०- पंचसंठा०-पंचसंघ०तिरिक्खाणु०-उज्जो०-अप्पसत्थ भग०-दुस्सर-अणादें जह० प० क. ? अण्ण० देव० मिच्छा० पढम०तब्भव० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । मणुस०-मणुसाणु०-तित्थ. ज० ५० क० ? अण्ण. देव० सम्मादि० तीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य है। मात्र कापोतलेश्यामें तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर नारकी उक्त प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तथा देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य है। २१९. पीतलेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्याहष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय और नीचगोत्रके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो आयुओंका भङ्ग देवोंके समान है। देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव है। तियश्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव है। एकेन्द्रियजाति, आतप और स्थावरदण्डक तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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