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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं १२९ सह ज०जो० | आहारदुगं० ज० प० क० १ अण्ण० अप्पमत्त० ऍकत्तीसदि ० अट्ठवि० घोल० ज०जो० । एवं ओधिदं ०. ० सम्मा० - खड्ग ० । २१५. मणप० पंचणा० ' - छदंसणा ० - सादा० - चंदु संज ० - उच्चा० - पंचत० दंडओ देवाउ ० ज० प० क० ? अण्ण० घोल० अट्ठवि० ज०जो० । असादा० -अरदि- सोग० ज० प० क० ? अण्ण० पमत्त० घोल० सत्तविध० ज०जो० । पुरिस०-हस्स-रदिभय०-दु० ज० प० क० ? अण्ण० पमत्त० अप्पमत्त० अट्ठविध० घोल० ज०जो० । देवग० - पंचिं ० - समचदु०० - वण्ण ०४ - देवाणुपु० - अगुरु ०४ - पसत्थवि०-तस० ४- थिर-सुभसुभग- सुस्सर-आदें ० जस० - णिमि० - तित्थ० ज० प० क० १ अण्ण० पमत्तापमत्त० घोल ० गुणतीसदि० सह अवि० ज०जो० । वेउ० आहार०-तेजा० क० - दोअंगो० ज० प० क० ? अण्ण० अप्पमत्त० घोल० ऍकतीसदि० सह अट्ठवि० ज०जो० । अथिरअसुभ अजस० ज० प० क० १ अण्ण० पमत्त० घोड० ऊणत्तीसं सह सत्तवि० ज० जो० । एवं संजद - सामाइ ० छेदो०- परिहार० । सुहुमसं० छण्णं क० ज० प० क० १ करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आहारकद्विकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी इकतीस प्रकृतियों के साथ आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योगसे युक्त अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव आहारकद्विकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए । २१५. मन:पर्ययज्ञानी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायदण्डक तथा देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । असातावेदनीय, अरति और शोकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान प्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धको स्वामी है । पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्साके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान प्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृ तियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । देवगति, प ेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशः कीर्ति, निर्माण और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर और दो आङ्गोपाङ्गों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी इकतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर घोलमान अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्तिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर प्रमत्तसंयत घोलमान जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धको स्वामी है। इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत और परिहारविशुद्धि १. प्रा० प्रतौ खड़ग० । मणुस० पंचणा० इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education Internatio www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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