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________________ महाबंध पदेस धाहियारे सामित्तपरूवणा १७२. सामित्तं दुविधं - जह० उक० । उक० पगदं । दुवि० - ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा ० चदुदंस ० -सादा० - जस० उच्चा० पंचंत० उक्कस्सपदेसंबंधो कस्स ? अण्णद० सुहुमसंप० उवसम० खवगस्स वा छव्विधबंधगस्स उक्क० जोगि० उक्कस्सपदे बंधे वट्ट० | थीण गिद्धि ० -३ - मिच्छ० - अनंताणु ०४ - इत्थि० - णवुंस०-णीचा० उक्क० पदे बंधो कस्स ? अण्ण० चदुग० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० सव्वाहि पजत्तीहि पजत्तगदस्स सत्तविध० उक्क० जोगि० उ०पदे० चट्ट० । णिद्दा- पयला-हस्सरदि-अरदि-सोग-भय-दु० उक्क० प०बं कस्स ? अण्ण० चदुगदि० सम्मादि० सव्वाहि पञ्ज० सत्तविध० उक्क०जो० उक्क०पदे० वट्ट० । असादा० उ० प०बं० क० ? अण्ण० चदुग० सण्णिस्स सम्मा० मिच्छा० सव्वाहि पज्ज० सत्तविध० उक्क。जो उक्क०पदे० वट्ट० । अपच्चक्खाणा०४ उ० प०बं० क० ? अण्ण० चदुग० असंज० सम्मा० सव्वाहि पज० सत्तविध० उक्क०जो० उक्क० वट्ट० । पच्चक्खाणा ०४ उ०प० क० १ है । मात्र भव्य मार्गणा में पाँच ज्ञानावरणादिके अनुत्कृष्टपदका ध्रुव भङ्ग नहीं बनता, क्योंकि भव्य होने से इनके सब प्रकारका बन्ध अध्रुव ही होता है । शेष सब मार्गणाएँ कादाचित्क हैं, इसलिए उनमें सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट आदि पद कादाचित्क होनेसे सादि और अध्रुव कहे हैं। ९२ स्वामित्व प्ररूपणा १७२. स्वामित्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | ओघसे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? छह प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला, उत्कृष्ट योगसे युक्त और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित अन्यतर उपशामक और क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नीचगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला, उत्कृष्ट योग से युक्त और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय संज्ञी मिध्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । निद्रा, प्रचला, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला, उत्कृष्ट योग से युक्त और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । असातावेदनीयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला, उत्कृष्ट योगसे युक्त और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर चार गतिका संज्ञी सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव असातावेदनीयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । अप्रत्याख्यानावरण चारके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला, योग से युक्त और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि १. प्रतौ सुहुमसंप० अण्णद० उवसम० इति पाठ: । २ ता०प्रतौ असादा० उ० [ जो० ] इति पाठः । उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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