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________________ बंधसणियांसपरूवणा १५०. सादावेदणीयं उक्क० अणुभागं बंधतो पंचणा०-चदुदंस०-पंचंत० णि. अर्णतगुणहीणं बं० । जसगि०-उच्चा० णि. उक्कस्स० । एवं जस०-उच्चा० । १५१. इत्थिवे० उक्क० बं० पंचणा०-णवदंस०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०अरदि-सोग-भय-दु०-तिरिक्व०-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-ओरालि०अंगो०-पसत्थापसत्थ०४ -तिरिक्खाणु० - अगु०४-अप्पसत्थ० - तस०४-अथिरादिछ० - णिमि०णीचा०-पंचंत० णि. बं० अणंतगुणही । तिण्णिसंठा० तिण्णिसंघ०-उज्जो० सिया० अणंतगुणही० । एवं पुरिस० । णवरि दोगदि--पंचसंठा-पंचसंघ०-दोआणु०-उज्जो० सिया० अणंत०हीणं०। १५२. हस्स० उक्क० पंचणा०-णवदंसणा०-असादा-मिच्छ०-सोलसक०-भयदु०-पंचिंदि०-तेजा०-क०-पसत्थापसत्थ०४-अगु०-उप०-अथिरादिपंच०-णिमि० णीचा०पंचंत० णि० अणंतगु०हीणं० । इत्थि०-णqस०-दोगदि-पंचजादि-पंचसंठा०-ओरालि. अंगो०-पंचसंघ-दोआणु०-पर०-उस्सा०--आदाउज्जो०-अप्पसत्थ० --तस--थावर-बादरसुहुम-पज्जत्तापज्ज -पत्ते--साधार०-दुस्सर० सिया० अणंतगु०ही० । रदि० णि० । संस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका भङ्ग जानना चाहिए। १५०. सातावेदनीयके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगुणा हीन होता है। यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। १५१. स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यश्चगति, पञ्चन्द्रिय जाति, औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक प्रांगोपांग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, अस्थिर आदि छह, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगुणा हीन होता है। तीन संस्थान, तीन संहनन और उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणा हीन होता है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि दो गति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, दो आनुपूर्वी और उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणा हीन होता है। १५२. हास्यके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, अस्थिर आदि पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे वन्ध करता है जो अनुत्कृष्ट अनन्तगुणा हीन होता है। स्त्रीवेद. नपुंसकवेद, दो गति, पाँच जाति, न, औदारिक प्रांगोपांग, पाँच संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण और दुःस्वरका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणा हीन होता है। रतिका नियमसे बन्ध करता है जो उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी वन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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