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________________ ४१० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे एगेगे वा सिज्झमाणा गदा ताव याव ओरालि० जहणियाए ढि० जहण्ण० अणु० अणंत। तदो जहण्णादो हिदीदो पलि० असंमत्तीओ हिदी० अब्भुस्सरिदूण यम्हि हिदा उक्कस्सं तदो समऊ. हि० उ० अणु० अणंत । विसमऊ० ढि० उक्क० अणु० अणंत । तिसमऊ० ढि० उ० अणंत । एवं ताव णीदं याव ओरालि. जहण्णिायाए हि० उ० पदे उ० अणु० अणंत । एवं पंचसरीर-तिण्णंअंगो०-पसत्थ०४अगु०३-आदाउजो०-णिमि०-तित्थ० ओरा०भंगो०'। ६६४. एत्तो पंचिं० तिव्वमंदं वत्तइस्सामो। तं जहा-यथा वीसंसागरोवमकोडाकोडीओ बंधमाणस्स उक्क० द्विदी० जहण्णपदे जह० अणु० थोवा । समऊ. हि. ज. अणंत० । बिसम० ज० अणंत० । तिसम० ज० अणंत । एवं णिव्वग्गणकंडयमत्तीणं हि० ज० अणु० अणंत० सेडीए णेदव्वा । तदो उक्कस्सियाए द्वि० उ० पदे उक्क० अणु० [अणंत०] । तदो णिव्वग्गणकंडयमत्तीओ हिदीओ ओसकिदूण जम्हि द्विदा जह तदो समऊ. जह० अणु० अणंत । तदो उक्कस्सियादो हि० समऊ. हि० उक्क० अणु० अणंत । तदो हेहादो ऍक्किस्से हि० ज० अणंत । तदो उक्कस्सियाए हिदी० अनुभाग एक-एक स्थितिमें प्राप्त होता हुआ औदारिकशरीरकी जघन्य स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है-इस स्थानके प्राप्त होने तक गया है। फिर जघन्य स्थितिसे पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितियाँ उपर जाकर जिस स्थित्तिमें उत्कृष्ट अनुभाग स्थित है,उससे एक समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे तीन समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार औदारिकशरीरकी जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है-इस स्थानके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । इस प्रकार पाँच शरीर, तीन आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, आतप, उद्योत, निर्माण और तीर्थङ्कर प्रकृतिका तीव्रमन्द औदारिकशरीरके समान जानना चाहिए। विशेषार्थ—यहाँ औदारिकशरीरका तीव्र-मन्द बतलाया है। यह प्रशस्त प्रकृति है, इसलिए उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य पदकी अपेक्षा जघन्य अनुभाग सबसे स्तोक बतलाया है। आगे जिस क्रमसे जिस स्थितिमें जघन्य और उत्कृष्ट अनुभाग प्राप्त होता है, उसका स्पष्टीकरण मूलमें किया ही है। ६६४. आगे पश्चेन्द्रियजातिके तीव्रमन्दको बतलाते हैं । यथा-बीस कोडाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिका बन्ध करनेवालेके उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग सबसे स्तोक है। उससे एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे तीन समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार निवर्गणाकाण्डकप्रमाण स्थितियोंका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना चाहिए । इस प्रकार निर्वर्गणाकाण्डकप्रमाण स्थितियोंमेंसे अन्तिम स्थितिका जो जघन्य अनुभाग प्राप्त हुआ है,उससे उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे निर्वगणाकाण्डकप्रमाण स्थितियाँ नीचे जाकर जिस स्थितिमें जघन्य अनुभाग स्थित है, उससे एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे उत्कृष्ट स्थितिसे एक समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे नीचेकी एक स्थितिका १. ता. प्रतो तित्थ० ओरा। एत्तो इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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