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________________ तिव्वमंदपरूवणा ४०९ ऍक्किस्से द्वि० उ० अणु० अणंतगु० । इतरत्थ' ज. अणंत । हेट्ठादो ऍकिस्से ट्ठि० उ० अणंतगु० । एवं णीदं याव तिरिक्खगदिणामाए उक्क० हिदीए ज० अणु० अणंतगु० । तदो पलि० असं भाग;ओसकिदूण जम्हि द्विदा उक्कस्सा तदो समउत्तराए हि० उ० अणु० अणंतगु० । विसम० उ० अणु० अणंतगु० । एवं अणुभागबंध० अणंत० याव तिरिक्खगदिणामाए उक्कस्सियाए हि० उक्क०पदे उक्क० अणु० अणंतगु० । एवं तिरिक्खाणु०-णीचा०। ६६३. एत्तो ओरालिय० तिव्वमंदं वत्तइस्सामो। तं जहा-ओरालियसरीरणामाए उक्कस्सियाए ट्ठि० ज० द्विदी० ज० अणु० थोवा । समऊ० ज० अणु० अणंतगु० । विसमऊ० ज० अणु० अणंतगु० । एवं पलि० असं० ज० अणंतगु० । तदो उक्कस्सियाए द्विदी० उ० अणु० अणंत । तदो जम्हि द्विदा ज० ट्ठि० ज० अणु० तदो समऊ. अणंत०। उक्कस्सियादो द्वि० समऊ. डि. उक्क० अणु० अणंतगु० । तदो हेहादो ऍकिस्से हि० ज० अणंत । तदो उक्कस्सियादो विसम० उ० हि० उक० अणु० अणंत । एवं हेहदो ऍकिस्से जह० उवरिमाए ऍकिस्से हि० उ० अणु० समय अधिक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे अधस्तन एक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे उपरिम एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे अधस्तन एक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे उपरिम एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार तिर्यश्चगतिकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है,इस स्थानके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। पुनः यहाँसे पल्यके असंख्यातवे भाग प्रमाण पीछे हटकर जिस स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग स्थित है, उससे एक समय अधिक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय अधिक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार तिर्यश्चगतिकी उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है-इस स्थानके प्राप्त होने तक उत्तरोत्तर प्रत्येक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। इसी प्रकार तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रकी अपेक्षासे जानना चाहिए। विशेषार्थ-यहाँ मूलमें किस स्थितिका जघन्य और किस स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग कितना है, इसका खुलासा किया ही है । तथा पहले हम मतिज्ञानावरणादि प्रकृतियोंके समय ही खुलासा कर आये हैं, अतः यहाँ विशेष नहीं लिख रहे हैं । इसी प्रकार आगे भी जान लेना चाहिए। ६६३. आगे औदारिकशरीरका तीव्रमन्द बतलाते हैं। यथा-औदारिकशरीरकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग सबसे स्तोक है। उससे एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे दो समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियों तक उत्तरोत्तर एक-एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार यहाँ अन्तमें जो स्थिति प्राप्त हो, उसके जघन्य अनुभागसे उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे जिस स्थितिमें जघन्य अनुभाग स्थित है.उससे एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे उत्कृष्ट स्थितिसे एक समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे अधस्तन एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे उत्कृष्ट स्थितिसे दो समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार अधस्तन एक स्थितिका जघन्य अनुभाग और उपरिम एक स्थितिका उत्कृष्ट १. ता. प्रतौ इतरथा इति पाठः । २. आ० प्रतौ तिरिक्खाणु० एन्तो इति पाठः। Jain Education Internatiog For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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