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________________ तिव्वमंदपरूवणा ४११ दुसमऊ ० उ० अणु० अनंत । तदो हेडदो एकिस्से द्वि० ज० अणु० अनंत । तदो उक्कस्सियादो तिसमऊ ० डि० उक्क० अणु० अनंत । एवं हेट्ठदो ऍकिस्से डि० ज० अनंत । उवरि ऍकिस्से डि० उ० अनंत । एवं ओघसिजमाणं ताव गदा याव अट्ठारससागरोवमकोड कोडीओ समउत्तरा त्ति । अट्ठारसण्णं सागरोवमकोडाकोडीणं उवरि समउत्तरा ट्ठिदि आदि काढूण णिव्वग्गण० मेंत्तीणं हिदीणं उक्कस्सा अणुभागा ण भणिदा । उवरि सेसं सव्वं भणिदं । तदो अट्ठारसणं साग० पडिपुण्णं ज० ज० अणु० अनंत । तदो समऊ० ज० अणु० तत्तिया चेव । विसम० ज० तत्तिया चेव । तिसम० ज० तत्तिया चैत्र । एवं याव जहण्णियाए एइंदियणामाए द्विदिबंधो ताव तत्तिया चेव । तदो परियत्तमाणजहण्णाणुभागबंधपाओग्गाणं जहण्णियाए हिदी० जह० अणुभागेहिंतो तदो समऊ० द्विदीए ज० अणु० अणं० । विसम० ज० अणंत० । तिसम० ज० अनंत । एवं असंखैजाओ ट्टि० णिव्वित्तेदूण णिव्वग्गणकंडयस्स असंखेज दिभागो तत्तियमेत्तीणं हिदीणं ज० अनंत सेडीए णेदव्वा । तदो अट्ठारसणं सागरो० उवरि यासिं हिदीणं उक्कस्सिया अणुभागा ण भणिदा तासिं सव्वुकस्सिया हिदीए उ० अणु० अणंत० । समऊ उक्क० अणु० अणंत० । विसमऊ ० उक्क० अणु० अनंत । तिसमऊ उक्क ० अणु० अनंत । एवं याव अट्ठारसकोडाकोडी समउत्तरादोत्ति ताव उक्क० अणु० अणंत० सेडीए णेदव्वं । तदो अट्ठारस जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे उत्कृष्ट स्थिति से दो समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे नीचेकी एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे उत्कृष्ट स्थिति से तीन समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार नीचेकी एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है और ऊपरकी एक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार ओके अनुसार सिद्ध होता हुआ एक समय अधिक अठारह कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण स्थिति प्राप्त होने तक अनुभाग गया है। यहाँ एक समय अधिक अठारह कोड़ा कोड़ी सागरप्रमाण स्थितियोंसे लेकर ऊपरकी निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा है; ऊपरका शेष सब अनुभाग कहा है। आगे पूरे अठारह कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण अन्तिम स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग उतना ही है । उससे दो समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग उतना ही है। उससे तीन समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग उतना ही है। इस प्रकार एकेन्द्रियजाति नामकर्मके जघन्य स्थितिबन्धके समान स्थितिबंधके प्राप्त होने तक जघन्य अनुभाग उतना ही है। आगे परिवर्तमान जघन्य अनुभागबन्ध योग्य प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबन्धके जघन्य अनुभागसे एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे तीन समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार निर्वर्गणाकाण्डकके असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यात स्थितियोंका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना चाहिए। उससे अठारह कोड़ाकोड़ी सागरके ऊपर जिन स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा गया है, उनमें से सर्वोत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय कम उत्कृष्ट कम उत्कृष्ट स्थितिका स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे तीन समय उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार एक समय अधिक अठारह कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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