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________________ पदणिक्खेवे सामितं ३३३ उ० हा० क० ? यो तप्पा० उक्क० अणु० बंधमाणो सागारक्णएण पडिभग्गो तप्पा० जह० पदिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवद्वाणं । मणुसाउ • ओघं । ५७०. पंचि ० -तस०२ ओघभंगो । णवरि पंचणा० दंडओ उक्क० वड्डी ओघं० । हाणी अवद्वाणं सागरक्खएण पडिभग्गो ति भाणिदव्वं । पंचमण० - पंचवचि० खविगाणं पगदीणं मणुसिभंगो | सेसं पंचिं० भंगो । कायजोगि० ओघं । ओरालि० मणुसभंगो । वरि उज• तिरिक्ख० भंगो । ओरालियमि० पंचणाणावरणादिसंकिलिट्ठपगदीणं उक्क० बड्डी क० १ यो से काले सरीरपत्ती जाहिदि ति जहण्णगादो संकिलेसादो उकस्सगं संकिलेस गदो तदो उक्क० अणु० पबंधो तस्स उ० वड्डी । उ० हा० क० १ यो उ० अणु० बंधमाणो दुसमयसरीरपञ्जत्तिं जाहिदि ति सागारक्खएण पडिभग्गो तस्स उ० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवद्वाणं । सादादीणं सव्वविसुद्धाणं उक्क० वड्ढी क० ? यो जहण्णगादो विसोधीदो उक्क० विसोधिं गदो तदो से काले सरीरपति जाहिदि ति उक्क० अणु पबंधो तस्स उक्क ० वड्ढी । एवं सेसाणं पि तप्पाऑगसंकिलठाणं तप्पाऔग्गाविसुद्धाणं च एसेव आलावो कादव्वो । एवं वेउव्वियमि०आहारमिस्साणं पि । णवरि अप्पप्पणो पगदीओ कादव्वाओ । वेउव्वि० देवोघं । तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला जो जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । मनुष्यायुका भंग ओघके समान है । ५७०. पचेन्द्रियद्विक और सद्विक जीवोंमें ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि पाँच ज्ञानावरणदण्डककी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी ओघके समान है । हानि और अवस्थान जो साकार उपयोगसे प्रतिभग्न हुआ है उसके कहना चाहिए । पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंका भंग मनुष्यनियोंके समान है। शेष भंग पचेन्द्रियों के समान है। काययोगी जीवोंमें ओघके समान भंग है । औदारिककाययोगी जीवोंमें मनुष्यिनियोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि उद्योतका भंग तिर्यखोंके समान है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि संक्लिष्ट प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो तद्नन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होगा कि इसके पूर्व समयमें जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट को प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो जीव दो समय में शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होगा कि शरीर पर्याप्तिके समयसे दो समय पूर्व साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । सातावेदनीय आदि सर्वविशुद्ध प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर अगले समयमें शरीरपर्याप्तिको प्राप्त होगा कि. शरीरपर्याप्ति समयसे पूर्व समयमें उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । इसी प्रकार शेष प्रकृतियोंका भी तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट और तत्प्रायोग्य विशुद्ध जीवोंके यही आलाप करना चाहिए। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी प्रकृतियाँ करनी चाहिए । वैक्रियिक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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