SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ महायंघे अणुभागबंधाहियारे असं०-अप्पसत्थ०-दुस्स० इत्थिभंगो । सणक्कुमार याव सहस्सार त्ति पढमपुढविभंगो। आणद याव उवरिमगेवजा त्ति पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०पंचणोक०-हुंड०-असंप०-अप्पसत्थ०४-उप०-अप्पसत्थ०-अथिरादिछ०-णीचा०पंचंत० उक्क० वड्डी कस्स० ? यो तप्पाओग्गजहण्णगादो संकिलेसादो उक्क. संकिलेसं गदो तदो उक्क० अणु० पबंधो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी क० १ यो उक० अणुभा०बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाऑग्गजह० पडिदो तस्स उक. हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । साददंडओ णिरयभंगो। इत्थिवेददंडओ पंचिंतिरि०अपज भंगो। [मणुसाउ० देवोघं । ] अणुदिस याव सव्वट्ठ ति पंचणा०-छदंस०-असादा०-बारसक०-पुरिस०-अरदि-सोग-भय-दु०-अप्पसत्थवण्ण०४उप०-अथिर-असुभ-अजस०-पंचंत० उक्क० वड्डी कस्स ? यो जह० संकि० उक० संकिलेसं गदो तदो उक्क० अणु० पबंधो तस्स उक्क० वड्डी। उक्क० हा० क० ? यो उक० अणु० बंधमाणो सायारक्खएण पडिभग्गो तप्पाऑग्गजह० पदिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवहाणं । साददंडओ देवोघं । हस्स-रदि० उक्क. वड्डी क० १ यो तप्पाऑग्गजह० अणुभागं बंधमाणो तप्पाओ० जह० संकिलेसादो तप्पा० उक्क. संकिलेसं गदो तप्पाओ० उक्क० अणुभागबंधो तस्स उक० वड्डी । शेष प्रकृतियोंका भंग भी समान्य देवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका भंग स्त्रीवेदके समान है। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें प्रथम पृथिवीके समान भंग है। आनतकल्पसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, हुण्डसंस्थान, असम्प्राप्तामृपाटिकासंहनन, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। सातावेदनीयदण्डकका भंग नारकियोंके समान है। स्त्रीवेददण्डकका भंग तिर्यत्र अपर्याप्तकोंके समान है। मनुष्यायुका भंग सामान्य देवोंके समान है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयश:कीर्ति और पाँच अन्तरायको उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है तथा वही अनन्तर समयमें उकृष्ट अवस्थानका स्वामी है। सातावेदनीय दण्डकका भंग सामान्य देवोंके समान है। हास्य और रतिकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेशसे तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy