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________________ ३१८ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अवहि-अवत्त०बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । एवं याव अणाहारए ति । ___ एवं भावं समत्तं । अप्पाबहुआणुगमो ५४८. अप्पाबहुगं दुवि०–ओवे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०सोलसक०-भय-दु०-ओरालि०-तेजाक०-वण्ण:-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० सव्वस्थोवा अवत्त । अवढि० अणंतगु० । अप्प० असंखेंजगु० । भुज० विसे । सादासाद०-सत्तणोक०-तिणिक्खाउ०-दोगदि-पंचजा०-छस्संठा०-ओरा अंगो०- छस्संघ०-दोआणु०-पर-उस्सा०-आदाउञ्जो०-दोविहा०-तसादिदसयु०-दोगो० सव्वत्थोवा अवढि०। अवत्त० असंखेंजगुणा। अप्प० असं०गु०। भुज० विसे० । एवं तिण्णिआउ०-वेउवियछ । आहार०२ सव्वत्थोवा अवढि० । अवत्त० संखेज गु० । अप्प० संखेंगु० । भुज० विसे । तित्थ० सव्वत्थोवा अवत्त । अवढि० असंखेंजगु० । अप्प० असं० गु० । भुज० विसे० । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालि०, गवरि ओरालिए तित्थकरं आहारसरीरभंगो, अचक्खु -भवसि०-आहारए त्ति । प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कौनसा भाव है ? औदयिक भाव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इस प्रकार भाव समाप्त हुआ। __ अल्पबहुत्वानुगम . ५४८. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, तिर्यञ्चायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, सादि दस युगल और दो गोत्रके अवस्थित पदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगणे हैं। इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार तीन आयु और वैक्रियिकषटककी अपेक्षा जानना चाहिए। आहारकद्विकके अवस्थितपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगारपदके मन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी और औदारिककाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगी जीवोंमें तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग आहारकशरीरके समान है। तथा ओघके समान ही अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंमें जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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