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महाबथै भणुभागचंघाहियारे ५३५. सासणे धुविगाणं तिणिप० अह-बारह । दोआउ०-मणुसग०-मणुसाणु० उच्चा० सव्वप० अहो । देवाउ० ओघं। देवगदि०४ तिण्णिप० पंचचों । अवत्त० खेत । सेसं सव्वपदा अह-बारह । णवरि इत्थिल-पुरिस०-पंचसंठा-पंचसंघ०दोविहा०-सुभग-दूभ० दोसर-आर्दै०-अणादे०-णीचा० अवत्त० अहचों । ओरा०ओरालि अंगो० अवत्त० पंचचा ।
५३६. सम्मामि० धुविगाणं तिण्णिप० अह० । देवगदि०४ तिष्णिप० खेत्तः । सेसाणं सव्वपदा अहः ।
५३५. सासादनसम्यक्त्वमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन.पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवायुका भङ्ग ओघके समान है। देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, दो विहायोगति, सुभग, दुर्भग, दो स्वर, आदेय, अनादेय और नीचगोत्रके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा औदारिकशरीर
और औदारिक आङ्गोपाङ्गके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-आयुका बन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय नहीं होता। तथा सासादनसम्यग्दृष्टि जीव मर कर नरकमें नहीं जाता और सासादन सम्यग्दृष्टियोंके एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय मनुष्यगतिद्विक व उच्चगोत्रका बन्ध नहीं होता, इसलिए यहाँ इन सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। मनुष्यों और तिर्यञ्चोंके देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय देवगतिचतुष्कके तीन पदोंका ही बन्ध होता है। उसमें भी सासादनसम्यग्दृष्टि तियश्च सहस्रार कल्प तक ही मर कर उत्पन्न होते हैं। अतः यहाँ देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम पाँच बटे चौदह राजूप्रमाण और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। यद्यपि सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्य सहस्रार कल्पसे आगे भी उत्पन्न होते हैं पर इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है, अतः तीन पदोंकी अपेक्षा कहे गये उक्त स्पर्शनमें इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। तथा स्त्रीवेद आदिका यहाँ मारणान्तिक समुद्घातके समय या-उपपाद के समय अवक्तव्यबन्ध नहीं होता, अतः इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
५३६. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेपार्थ-सभ्यग्मिथ्यादृष्टि जीव न तो मरते ही हैं और न ही इनमें मारणान्तिक
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