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भुजगारबंचे कालानुगमो
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५३७. मिच्छा० मदि० भंगो। णवरि मिच्छत्तं अवत्तव्वं णत्थि । असन्णीसु धुविगाणं तिष्णप० सव्वलो० । सादादिदंडओ ओघं । दोआउ ० - वेड ०छ०० - ओरा ० अंगो खेत • ० । मणुसाउ० तिरिक्खोघं । अणाहार० कम्मइगभंगो ।
एवं फोसणं समत्तं कालागमो ।
०-अडक०
भुज ०-अप्प०
५३८. कालानुगमेण दुवि० - ओघे० आदे० । ओघेण पंचणा० - छदंस०भय - दु० – तेजा ० - क० - वण्ण ०४ - अगु० - उप० - णिमि० – पंचत० ras oबंधगा bafचिरं कालादो होदि ? सव्वद्धा । अवत० केव० १ ज० ए०, उ० संखेज सम० । थीणगि ०३ - मिच्छ० - अट्ठक० - ओरा० तिष्णिप० सव्वद्धा । अवत्त० ज० ए०, उ० आवलि० असंखें । दोवेदणीय-सत्तणोक ० - तिरिक्खाउ ० - दोगदि - पंचजा०
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समुद्घात होता है, इसलिए इनमें देवगतिचतुष्कको छोड़कर शेष सब प्रकृतियोंके अपने-अपने पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ वटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। देवगतिचतुष्कका बन्ध तिर्य और मनुष्य करते हैं और यहाँ इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अतः देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है ।
५३७. मिथ्यादृष्टि जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वका अवक्तव्यपढ़ नहीं है। असंज्ञियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग ओघके समान है । दो आयु, वैक्रियिकषटक और औदारिक आङ्गोपाङ्गका भङ्ग क्षेत्रके समान है । मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यखों के समान है । अनाहारकोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है।
विशेषार्थ – असंज्ञियों में पचेन्द्रिय असंज्ञी जीव ही नरकायु, देवायु और वैक्रियिकषट्कका बन्ध करते हैं और नारकियोंमें व देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय भी इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसलिए तो इन आठ प्रकृतियोंके सब पदोंका भङ्ग क्षेत्रके समान कहा है और औदारिक आङ्गोपाङ्गका सब पदोंकी अपेक्षा क्षेत्र ही सब लोक है, इसलिए स्पर्शन तो उतना होगा ही । यह देखकर इसके सब पदोंका भङ्ग भी क्षेत्रके समान कहा है । शेष कथन सुगम है ।
इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ ।
कालानुगम ।
५३८. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? सर्वदा काल है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, आठ कषाय और औदारिकशरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका सर्वदा काल है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। दो वेदनीय, सात नोकषाय, तिर्यवायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक मान
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