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________________ भुजगारबंधे फोसणं २९९ पंचिं०-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर-आदें० तिण्णिप० अह-बारह० । अवत्त० अडचों । दोआउ०-मणुस०-मणुसाणु०-आदा०-उच्चा० सव्वप० अहचों । एइंदि०-थावर० तिण्णिप० अह-णव० । अवत्त० अडचो। तित्थ० ओघं । वेउव्वियमि०-आहार-आहारमि० खेत्तभंगो। ५२४. कम्मइ० धुविगाणं तिण्णिप० सव्वलो० । सेसं ओरालियमि०भंगो । णवरि मिच्छ० अवत्त० ऍकारह। ५२५. इत्थिवे. पंचणा०-चदुदंसणा०-चदुसंज०-पंचंत. तिण्णिप० लो० असं० अहचों सव्वलो० । थीणगिद्धि०३-अणंताणु०४-णवंस०-तिरिक्ख०-एइंदि०-हुंड ०तिरिक्खाणु०-थावर-दूभग-अणादें-णीचा. तिण्णिप. अहचों सव्वलो० । अवत्त० अहो । णिद्दा-पयला-अहक०'-भय-दु०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०४-पजत्त-पत्तेणिमि० तिण्णिप० अट्टचों सव्वलो० । अवत्त० खेत्तः । [सादासाद०-चदुणोक०-थिरापुरुषवेद, पंचेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रियजाति और स्थावरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके बन्धक जीवोंका भङ्ग ओघके समान है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ५२४. कार्मणकाययोगी जीवोंमें ध्रुववन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष भङ्ग औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-नीचे पाँच राजू और ऊपर छह राजू इस प्रकार मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजू स्पर्शन जानना चाहिए। ५२५. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी चतुष्क, नपुंसकवेद, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यचगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बंटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, स्थिर, अस्थिर, १. ता. प्रतौ णिद्दा पयला य० (१) अडक०, आ प्रतौ णिद्दा पयला य अहक० इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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