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________________ ३०० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे स्थिर सुभासुम० चत्तारिपदा० अट्टचों॰ सव्वलो०] मिच्छ० तिष्णिप० अढचों सव्वलो० । अवत्त० अह-णव० । दोआउ०-इत्थि०-पुरिस०-मणुस-पंचसंठा-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु-आदाव-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदें-उच्चा० सव्वपदा अहचौ। दोआउ०-तिण्णिजा-आहार०२-तित्थ० सव्वप० खेत्तः । दोगदि-दोआणु० तिण्णिप० छच्चों । अवत्त० खेत्तः । पंचिं०-अप्पसत्य-तस-दूसर० तिण्णिप० अहबारह । अवत्त० अट्ठचौ० । ओरालि. तिण्णिप० अह० सव्वलो० । अवत्त० दिवङ्कचौ । विउवि०-वेउव्वि०अंगो० तिण्णिप० बारहों। अवत्त० खेत्त०] उजो०जस० सव्वप० अह-णव० । बादर० तिष्णिप० अह-तेरह । अवत्त० खेत । सुहुमअपज०-साधार० तिण्णिप० लो० असंखें. सव्वलो० । अवत्त० खेतः । [अजस० तिण्णिप० अहचा सव्वलो० । अवत्त० अह-णवचों] पुरिसेसु इत्थिभंगो । णवरि अपचक्खाण०४-ओरालि० अवत्त० लो० असं० छब्बों । तित्थ० ओघं। शुभ और अशुभके चारों पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यगति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, प्रशस्त विहायगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आय, तीन जाति, आहारकद्विक और तीर्थकरके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दो गति और दो आनुपूर्वीके तीन:पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पंचेन्द्रियजाति, मप्रशस्त विहायोगति, त्रस और दुःस्वरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तड़पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बट चौदह राजप्रमाणक्षेत्रका स्पर्शन किया है। औदारिकशरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बट चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्रव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उद्योत और यश-कीर्तिके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बट चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बट चौदह राजू और कुछ कम तेरह बट चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधा रणके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अयशःकीर्तिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बट चौदह राजूप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बट चौदह राजू और कुछ कम नौ बटेचौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेदी जीवोंमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान भन है। इतनी विशेषता है कि अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और औदारिकशरीरके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके भसंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम छह बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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