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________________ २९८ महाबचे अणुभागबंधाहियारे ५२२. ओरालि. पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०-ओरा०-तेजा०क०- वण्ण०४-अगु०-उप-णिमि०-पंचंत. तिण्णिप० सव्वलो। अवत्त० खेत० । णवरि मिच्छत्तस्स अवत्त० सत्तचोद । सादादिदंडओ ओघं । सेसं तिरिक्खोघं । ओरालियमि० धुविगाणं तिण्णिप० सव्वलो । सादादिदंडओ ओघं । मणुसाउ० तिरिक्खोघं । देवगदिपंचगस्स सव्वपदा खेत्तभंगो। मिच्छ० तिण्णिप० णाणाभंगो। अवत्त० खेत० । ५२३. वेउव्वियका० धुविगाणं तिणिप० अह-तेरह । थीणगि०३-अणंताणु० ४-णस०-तिरिक्ख०-हुंड-तिरिक्खाणु०-दूभ०-अणादें-णीचा. तिष्णिप० अहतेरह । अवत्त० अहचों । सादासाद०-चदुणोक -उज्जो०-थिरादितिष्णियु० सव्वप० अह-तेरह । मिच्छ० तिण्णिप० अह-तेरह । अवत्त०' अह-बारह० । इत्थि०-पुरिस०पाँच मनोयोगी आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ हैं, उनमें यह स्पर्शन अविकल बन जाता है। इस लिए उनमें पंचेन्द्रियोंके समान स्पर्शन जाननेकी सूचना की है। तथा काययोगी आदि मागेणाओंमें ओघप्ररूपणा घटित हो जाती है, इसलिए उनमें ओघके समान जाननेकी सूचना की है। इसी प्रकार आगे भी मार्गणाओंमें अपने-अपने स्वामित्वको जानकर स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । जहाँ विशेषता होगी, उसका निर्देश करेंगे। ५२२, औदारिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुला, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग ओघके समान है। शेष भङ्ग सामान्य तियेोंके समान है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग ओषके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यचोंके समान है। देवगतिपंचकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। . ५२३. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, अनन्तानुबन्धी चतुष्क, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, हुण्डसंस्थान, तिर्यचगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, उद्योत और स्थिर आदि तीन युगलके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह 'बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वीवेद, १. ताः प्रतौ अहतेरह । अक्त० अढतेरह० । अवत्त० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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