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________________ भुजगारबंधे फोसणं २९७ यहाँ इनका अवक्तव्यपद विहारादिके समय भी सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे इनके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। सातावेदनीय आदिके चारों पद विहारादिके समय और मारणान्तिक समुद्घातके समय सम्भव होनेसे इनके चारों पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण कहा है । अप्रत्याख्यानावरण चतुष्कके तीन पदोंकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण और सब लोकप्रमाण स्पर्शन पाँच ज्ञानावरणादिके समान घटित कर लेना चाहिये । तथा जो संयतासंयत आदि मर कर देवोंमें उत्पन्न होते हैं, उनके प्रथम समयमें इनका अवक्तव्यपद सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे इनके अवक्तव्यपदका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। देवोंमें विहारादिके समय और देवों व नारकियोंके मनुष्यों व तिर्यचोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय स्त्रीवेद आदिके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । किन्तु मारणान्तिक समुद्घातके समय इनका अवक्तव्यपद सम्भव नहीं है, इसलिए इनके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। नरकायु आदिके सब पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान है, यह स्पष्ट ही है। शेष दो आयु और मनुष्यगति आदिके सब पदोंका बन्ध देवोंमें विहारादिके समय भी सम्भव होनेसे यह कुछ आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। तिर्यञ्चों और मनुष्योंके नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय नरकगतिद्विकके और देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय देवगतिद्विकके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। मात्र ऐसे समयमें इन प्रकृतियोंका अवक्तव्यपद नहीं होता, इसलिए इस पदकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। देवोंमें विहारादिके समय और सब एकेन्द्रियोंमें औदारिकशरीरके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इसके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण और सर्वलोकप्रमाण कहा है। मात्र मुख्यतासे जो तिर्यंच और मनुष्य मर कर नारकियों और देवोंमें उत्पन्न होते हैं, उनके प्रथम समयमें इसका अवक्तव्यपद होता है। इसलिए इसके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। मनुष्यों और तिर्यचोंके नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय भी वैक्रियिकद्विकके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। पर ऐसे समय में इनका अवक्तव्यपद सम्भव न होनेसे इस अपेक्षासे स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। उद्योत और यश कीर्तिके सब पदोंका बन्ध विहारादिके समय और नीचे कुछ कम छह राजू व उपर कुछ कम सात राजूप्रमाण स्पर्शनके समय भी सम्भव होनेसे इनके सब पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। इसी प्रकार बादर प्रकृतिके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । मात्र ऐसे समयमें इसका अवक्तव्यपद सम्भव नहीं है, इसलिए इसके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। सूक्ष्मादिके तीन पदोंकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण होनेसे यह उक्तप्रमाण कहा है। तथा इनके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान है, यह स्पष्ट ही है। विहारादिके समय और सब एकेन्द्रियोंमें अयशःकीर्तिके तीन पद सम्भव होनेसे इसके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण और सर्वलोकप्रमाण कहा है। तथा इसके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू यश कीर्तिके समान जान लेना चाहिए । तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पद विहारादिके समय सम्भव होनेसे इसके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । तथा ऐसे समयमें इसका अवक्तव्यपद सम्भव नहीं है, इसलिए इस अपेक्षासे स्पशेन क्षेत्रके समान कहा है । यहाँ ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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