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________________ मुजगारे पोसणाणुगमो ५१४. णिरएमु धुविगाणं तिएिणप० छच्चों थीणगि०३-अर्णताणु०४-तिण्णिपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ पटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। भवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरण आदिके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपद एकेन्द्रियादि सव जीवोंके होते हैं, इसलिए इनका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। तथा उनका प्रवक्तव्य पद उपशमश्रेणिसे गिरनेवाले मनुष्य और मनुष्यनीके तथा ऐसे जीवके मरकर देव होने पर प्रथम समय में होता है, इसलिए इसका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। स्त्यानगृद्धि तीन और भनन्तानुबन्धी चारके भुजगार भादि तीन पदोंका स्वामित्व पाँच ज्ञानावरणके समान है, इसलिए इनके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन सर्व लोक कहा है। तथा इनका अवक्तव्यपद ऊपरके गुणस्थानोंसे गिरकर इनके बन्धके प्रथम समयमें होता है। ऐसे जीवोंका स्पर्शन देवोंकी मुख्यतासे कुछ कम आठ वटे चौदह राजुप्रमाण है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। सातावेदनीय आदि कुछ परावर्तमान प्रकृतियाँ हैं और कुछ अध्रुवबन्धिनी हैं। इनके भुजगार आदि पदोंका बन्ध एकेन्द्रिय आदि सब जीवोंके सम्भव है, अतः इनके सब पदोंके बन्धकोंका स्पर्शन सर्व लोक प्रमाण कहा है। मिथ्यात्वके सब पदोंका स्पर्शन स्त्यानगृद्धित्रिकके समान घटित कर लेना चाहिए । मात्र नीचे कुछ कम पाँच राजू और ऊपर कुछ कम सात राजूप्रमाण क्षेत्र में मारणान्तिक समुद्घातके समय भी इसका प्रवक्तव्यबन्ध सम्भव है, इसलिये इस पदकी अपेक्षा इसका स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण भी कहा है । अप्रत्याख्यानावरण चारके तीन पद एकेन्द्रिय आदि सब जीवोंके सम्भव है, इसलिए इनकी अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण स्पर्शन कहा है । तथा इनका प्रवक्तव्य पद ऊपर कुछ कम छह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन करनेवाले जीवोंके भी होता है, अतः यह उक्त प्रमाण कहा है। नरकायु और देवायुका बन्ध असंज्ञी आदि मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पदके बिना करते हैं और आहारकद्विकका संयत जीव करते हैं, अतः इनके चारों पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण कहा है। मनुष्यायुके चारों पद देवोंके विहारादिके समय और एकेन्द्रियोंके सम्भव हैं, अतः इसके चारों पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक प्रमाण कहा है। जो तिर्यश्च और मनुष्य नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुदघात करते हैं.उनके क्रमसे नरकगतिद्विक और देवगतिद्विकके भजगार आदि तीन पद सम्भव हैं, अतः इनके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। परन्तु मारणान्तिक समुद्घातके समय इनका अवक्तव्यपद सम्भव नहीं है, इसलिए इनके प्रवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्र के समान कहा है । औदारिकशरीरके तीन पदो की अपेक्षा स्पर्शन ज्ञानावरणके समान घटित कर लेना चाहिए। तथा नारकी और देव उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें औदारिक शरीरका अवक्तव्यबन्ध करते हैं, इसलिए इस पदकी अपेक्षा कुछ कम बारह नढे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है। तिर्यञ्चों और मनुष्योंके नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय वैक्रियिक शरीरद्विकके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा कुछ कम बारह बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन कहा है,पर ऐसे मनुष्यों और तिर्यञ्चोंके इनका प्रवक्तव्यपद नहीं होता। इसलिए इसकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । विहारादिके समय देवों के तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजु प्रमाण कहा है। तथा तीर्थङ्कर प्रकृतिका अवक्तव्यपद एक तो मनुष्यों के होता है और तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध करनेवाले जो मनुष्य दूसरे और तीसरे नरकमें उत्पन्न होते हैं, उनके होता है। इन सबके स्पर्शनका यदि विचार करते हैं तो वह लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, इसलिए यह क्षेत्र के समान कहा है। ५१४. नारकियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह पढे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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