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________________ २८६ महापंधे अणुभागवधाहियारे फोसणाणुगमो ५१३. फोसणाणु० दुवि०-ओघे० प्रादे। ओघे० पंचणा०-छदंस०-अहक०भय-दु०-तेजा०-क०-वएण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० भुज०-अप्प०-अवहि०बंधगेहि केवडियं खेचे पोसिदं ? सव्वलो। अवल० लो० असंखें। थीणगिदि०३-अर्णताणु०४ तिएिणप० सव्वलो० । अवच० अहचों। सादासाद०-सत्तणोक-तिरिक्खाउ०-दोगदि-पंचजादि-छस्संठा०-ओरा० अंगो०-छस्संघ०-दोआणु०-पर-उस्सा०-आदाउज्जो०दोविहा०--तसादिदसयु०-दोगो० भुज०-अप्प०-अवहि०--अवत्त० के ? सव्वलो० । मिच्छ० तिषिणप० सव्वलो०। अवच. अह-बारह० । अपचक्खाण०४ तिएिणप० सव्वलो० । अवत्त० छच्चों । णिरय-देवाउ.-आहार०२ चत्तारिप० के १ लो. असं०। मणुसाउ० चत्तारिप० अहचों सव्वलो। णिरय-देवग०-दोआणु० तिएिणप० छच्चों। अवत्त० खेत० । ओरालि० तिएिणप० सव्वलो० । अवत्त० बारहों। वेउन्वि०-उन्वि०-अंगो० तिपिणाप० बारह० । अवत्त० खेत। तित्थयरं तिएिणप० अह । अवत्त० खेत। स्पर्शनानुगम ५१३. स्पर्शानुगम दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, पाठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके वन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, गिर्यश्चायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक आंगोपांग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छवास, पातप, उद्योत, दो विहायोगति, सादि दस युगल और दो गोत्रके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुपमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अप्रत्याख्यानायरण चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु और आहारकद्विकके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ! लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका सर्शन किया है। मनुष्यायुके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकका स्पर्शन किया है। नरकगति, देवगति और दो आनुपूर्वी के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। औदारिकशरीरके तीन पदों के बन्धक जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आंगोपांगके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह घटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। प्रवक्तव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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