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२८.
महापंधे अणुभागबंधाहियारे बँजा । माहारदुर्ग भुज०-[अप्प०-]-अवहि-अवत० के०१ संखेंज्जा । तित्य० सुज.. अप्प०-अवहि० के १ असंखेंजा । अवत्त० के १ संखेंजा। एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालि०-[ णदुंस०-कोधादि०४-] अचक्खु०-भवसि-आहारए ति । गवरि ओरालि. तित्थ० संखेज्जा।
५००.णिरएसु मणुसाउ०सव्वपदा० तित्थय० अवत्त० के०१ संखेंज्जा । सैसाणं सव्वपदा के ? असंखें। एवं सव्वणिरय--सव्वदेवा याव अपराजिदा शि बेउ०वे०मि०--इत्थि०--पुरिस०--विभंग०-सासणसम्मादिहि ति । णवरि इत्थि० तित्थ. संखें]
५०१. तिरिक्खेमु धुविगाणं तिण्णिपदा के ? अणंता । सेसाणं ओघं। एवं तिरिक्खोघभंगो मदि०-सुद-असंज०-तिरिणले०-अब्भवसि०-मिच्छा०-असरणीम् । पंचिंदियतिरिक्ख०३ धुविगाणं तिएिणपदा के ? असंखें । सेसाणं परियत्तमाणियाणं चत्तारिपदा के ? असंखें। एवं सन्वअपज०-सव्वविगलिंदि०-पुढ०-आउ०. तेउ०-वाउ०-चादरपत्तेग ति ।
५०२. मणुसेस पंचणा०--णवदंस०--मिच्छ०--सोलसक०--भय-दु०--ओरालि.. तेजा-क०-वएण०४-अगु०-उप--णिमि०--पंचंत. तिण्णिप० असंखें । अवत्त कितने हैं ? असंख्यात हैं। श्राहारकद्विकके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तीर्थकर प्रकृतिके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचनुदर्शनी. भव्य और आहारक जीवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगी जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं।
५००. नारकियोंमें मनुष्यायुके सब पदोंके और तीर्थकर प्रकृतिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं? संख्यात हैं। शेष प्रकृतियों के सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं। संस हैं। इसी प्रकार सब नारकी, देव, अपराजित विमान तकके सब देव, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिक. मिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं।
५०१. तिर्यञ्चोंके ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। शेष प्रकृतियोंका भेग अोधके समान है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंके समान मत्यज्ञानी, ता. ज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए । पञ्चन्द्रिय तिर्यश्चत्रिक ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। शेष परिवर्तमान प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक नीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब अपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और चादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवोंके जानना चाहिए।
५०२. मनुष्यों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलधु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। दो
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