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________________ भुजगारे परिमाणासुगमो २८१ संखेंजा । दोआउ०--वेउवि०छ० -आहार०२-तित्य. चत्तारिपदा के ? संखेजा। सेसाणं चत्तारिपदा के १ असंखें । मणुसपज्जत-मणुसिणीच सव्वपगदीणं सव्वपदा कैतिया १ संखे । मणुसिभंगो सव्वदृ०--आहार-आहारमि०--अवगद०--मणपज्ज०संजद०-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुहुम० । ५०३. एइंदिएमु सव्वपगदीणं सव्वपदा के०१ अणंता । णवरि मणुसाउ० ओघं । एवं वणप्फदि-णियोद०। ५०४. पंचिंदिएम पंचणा०-छदंस०-अहक०-भय--दु०--तेजा-का-वएण०४अगु०-उप०-णिमि०--तित्थय०--पंचंत. तिण्णिप० के० ? असंखें । अवत्ता के ? संखें । आहारदुगं सव्वप० के ? संखें । सेसाणं चत्तारिपदा के ? असंखें । एवं पंचिंदियपज्ज---तस-तसपज्ज--पंचमण--पंचवचि०--चक्खु०-सण्णि ति । ओरा०मि० कम्मइ०-[अणाहार०] तिरिक्खोघं । णवरि देवगदिपंचग० सन्वपदा संखेजा। ____५०५. आभिणि०--सुद०--ओधि. पंचणा०-छदंस--अहक०-पुरिस०-भय-दु०देवग०-पंचिं०-वेउ०-तेजा.-क०--समचदु०-वेउ० अंगो०--वएण०४-देवाणु०-अगु०-पसस्थवि०-तस०४-सुभग-सुस्सर-आदें--णिमि-तिस्थ०--उच्चा०-पंचंत० तिएिणप० के० ? आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके चारों पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके चारों पदोंके बन्धक जीव कितने हैं, असंख्यात हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मनापर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें मनुष्यिनियोंके समान भंग है। ५०३. एकेन्द्रियोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं । अनन्त हैं। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें जानना चाहिए। ५०४. पञ्चन्द्रियोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपधात, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके चारों पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसीप्रकार पञ्चन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रसपर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सामान्य तिर्यञ्चों के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि देवगतिपञ्चकके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। ५०५. श्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण,छह दर्शनावरण, आठ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, देवगति, पञ्चन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कामणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, वैक्रियिकांगोपांग, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूवी, अगुरुलघु, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थकर, उचगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अबक्तव्यपदके बन्धक जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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