________________
भुजगारबंधे सामित्ताणुगमो
२४३ ओरालि. पढमदंड अवत्त० कस्स० १ अण्ण उवसमणादो परिवद० पढमस० मणुसस्स वा मणुसणीए वा।
४५५. णेरइएमु धुविगाणं भुज०-अप्पद०-अवहि० कस्स० ? अण्ण० । थीणगिदि०-मिच्छ०-अणंताण.४ तिण्णिपदा ओघं । अवत्त० कस्स० ? अण्ण० सम्मत्त. सम्मामि० परिवद० पढमसम० मिच्छा० सासण। णवरि मिच्छा० अवत्त० कस्स०? अण्ण० सम्म० सासण० सम्मामि० वा परिवद० पढमस० मिच्छा० । सेसा० ओघं । एवं सव्वणेरइगाणं । णवरि सत्तमाए तिरिक्ख०--तिरिक्रवाणु०--णीचा० थीणगि०भंगो । मणुस०-मणुसाणु०-उच्चा० तिण्णिपदा णाणाभंगो । अवत्त० कस्स० ? अण्ण. पढम० असंज० सम्मामि० ।
४५६. तिरिक्खेसु धुविगाणं णेरइगभंगो। सेसं ओघ । णवरि संजमो णत्थि। सेसाणं सव्वाणं अणाहारए त्ति अोघं । कायाणं साधेदव्वं । णवरि तेउलेस्साए इत्थि०पुरिस० भुज०-अप्प०--अवहि-अवत्त० कस्स० ? अण्णद० तिगदियस्स० । णवूस० तिण्णिपदा अवत्त० कस्स० ? अण्ण० देवस्स । तिरिक्खगदि-मणुसगदि० तासिं आणु० तिएिणपदा देवस्स० । अवत्त० क० १ अण्ण० देवस्स परियत्तमाणयस्स । ओरालि. प्रथम दण्डकके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? उपशमश्रणीसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती अन्यतर मनुष्य और मनुष्यिनी प्रथम दण्डकके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है।
४५५. नारकियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर नारकी स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुनन्धी चारके तीन पदोंका भंग ओघके समान है। अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वसे गिरनेवाला अन्यतर प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्व, सासादनसम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वसे गिरनेवाला अन्यतर प्रथमसमयवर्ती मिथ्यादृष्टि नारकी मिथ्यात्वके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार सब नारकियोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग स्त्यानगृद्धिके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इनके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रथम समयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारकी इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है।
४५६. तिर्यश्चोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतिचोंका भङ्ग नारकियोंके समान है। शेष भङ्ग ओषके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके संयम नहीं है। अनाहारक मार्गणा तक शेष सबका भङ्ग ओषके समान है। पाँच स्थावरकायवालोंका साध लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पीतलेश्यामें स्त्रीवेद और पुरुषवेदके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है। अन्यतर तीन गतिका जीव स्वामी है। नपुंसकवेदके तीन पदोंका और अवक्तव्यपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव स्वामी है । तिर्यश्चगति, मनुष्यगति और उनकी आनुपूर्वियोंके तीन पदोंका स्वामी देव है। अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org