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महाबंधे अणुभागधंधाहियारे तादो संजमादो संजमासंजमादो सम्मामिच्छत्तादो वा परिवदमाणयस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स वा सासणसम्मा० वा । णवरि मिच्छा असंजमादों' संजमासंजमादो संजमादो वा सासण० सम्मामि० वा परिवदमा० पढमसमयमिच्छादि०। सादासाद०. सत्तणोक०--चदुगदि--पंचजादि-दोसरीर-छस्संठा०-दोअंगो०--छस्संघ०--चदुआणु०दोविहा०-तसथावरादिदसयुग०-दोगो० तिण्णिपदा णाणावरणभंगो। अवत्तव्व० कस्स०१ अण्ण० परियत्तमाणयस्स पढमसमयबंधमाणयस्स । अपञ्चक्खाण०४ तिण्णिपदा णाणा०भंगो । अवत्त० कस्स० १ अण्ण. संजमादो वा संजामासंज० परिवद० पढमसम० मिच्छादि० सासण० सम्मामि० असंजदसम्मा० । पञ्चक्खाण०४ तिण्णिपदा णाणा०भंगो। अवत्त० कस्स० १ अण्ण. संजमादो परिवद० पढमस० मिच्छा० सासण. सम्मामि० असंजद० संजदासंजदस्स वा । चदुआउ०-आहारदुग-पर०-उस्सा०-उज्जो०तित्थय. तिएिणपदा णाणा भंगो। अवत्त० कस्स० १ अण्ण• पढमसमयबंधगस्स । एवं ओघभंगो मणुस०३-पंचिंदि०-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरालि.लोभक०-चक्खु०-अचक्खु०-भवसि०-सएिण-आहारए ति। णवरि मणुस०-मण-बचि०
संयमसे, संयमासंयमसे और सम्यग्मिथ्यात्वसे गिरकर प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि जीव है, वह उक्त प्रकृतियोंके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? असंयमसे, संयमासंयमसे, संयमसे, सासादनसे
और सम्यग्मिध्यात्वसे गिरकर जो प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि है,वह मिथ्यात्वके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी हैं। सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, चार गति, पांच जाति, दो शरीर, छह संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, चार आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स-स्थावर आदि दस युगल और दो गोत्रके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? जो परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला प्रथम समयमें इनका बन्ध करता है, वह इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है। इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? संयम या संयमासंयमसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिध्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि अन्यतर जीव इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है। प्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? संयमसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत अन्यतर जीव इनके श्रवक्तव्यबन्धका स्वामी है। चार आयु, आहारकद्विक, परघात, उच्छ्वास, उद्योत और तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है? प्रथम समयमें 'बन्ध करनेवाला अन्यतर जीव इनके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी है। इसीप्रकार ओघके समान मनुष्यत्रिक, पञ्चन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी,लोभकषायी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चहिये । इतनी विशेषता है कि मनुष्य, मनोयोगी, वचनयोगी और औदारिककाययोगी जीवोंमें
१. ता. प्रा. प्रत्योः सम्मा०वा मिच्छा. णवरि असंजमादो इति पाठः । २. ता. प्रती अर्सनमादो संजमादो इति पाठः।
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