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भुजगारबंधे सामित्ताणुगमो
२४१ सैसाणं चत्तारिपदा। अवगद० सव्वाणं अत्थि भुज०-अप्पद०-अवत्तव्वबंधगा य । कोधे इत्यिभंगो। माणे पंचणा०-चदुदंस-तिण्णिसंज०-पंचंत० अत्थि तिण्णि पदा। एवं मायाए । णवरि दोसंज० । सेसं ओघं । लोभे पंचणा०-चदुदंस-पंचंत. अत्थि तिएिणपदा। सेसं ओघं । सामाइ०-छेदो० पंचणा०-चदुदंस०-लोभसंज०-उच्चा.. पंचत० अत्यि तिषिणपदा। सेसं ओघं । मुहुमसं० सव्वाणं अत्थि भुज०-अप्पदः । सेसाणं णिरयभंगो । किंचि विसेसो णादव्यो ।
एवं समुकित्तणा समत्ती ।
सामिचाणुगमो ४५४. सामित्ताणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-छदंस०-चदुसंज०-भय-दु०--तेजा०--क०--पसत्थापसत्थ०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत. भुज०अप्पद०-अवहि. कस्स० १ अण्ण । अवत्तव्वबंधो कस्स ? अण्ण० उवसामणादो पडिपदमाणस्स मणुस्सस्स वा मणुसिणीए वा पढमसमयदेवस्स वा। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०अणंताणु०४-तिएिणपदा णाणोवरणभंगो। अवत्तव्व० कस्स ? अण्ण० असंजमसम्मनपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके अबक्तव्यबन्धको छोड़कर तीन पद हैं तथा शेष प्रकृतियोंके चार पद हैं। अपगतवेदी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगारबन्धक, अल्पतरबन्धक और अवक्तव्यबन्धक जीव हैं। क्रोधकषायमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान भङ्ग है। मानकषायमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, तीन संज्वलन और पाँच अन्तरायके तीन पद हैं । इसी प्रकार मायाकषायमें भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ दो संज्वलन कहने चाहिए। शेष भङ्ग ओषके समान है। लोभकषायमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायके तीन पद हैं। शेष भङ्ग ओघके समान है। सामायिकसंयत
और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ संज्वलन, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पद हैं। शेष भङ्ग ओघके समान है। सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपद हैं। शेष मार्गणाओंका भङ्ग नारकियोंके समान है । किश्चित् विशेषता है, वह जान लेनी चाहिए।
इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई ।
स्वामित्वानुगम ४५४. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला अन्यतर मनुष्य, मनुष्यिनी या प्रथम समयवर्ती देव स्वामी है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव असंयतसम्यक्त्वसे,
१. ता० प्रती एवं समुक्कत्तिणा समत्ता इति पाठो नास्ति ।
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