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कालपरूवणा
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उ० संखेज्ज० । अज० सव्वद्धा । सादासाद ० - तिरिक्खाउ०- मणुस ० चदुजा ० - इस्संठा ० छस्संघ० -- ० - मणुसाणु ० दोविहा ० - थावरादि ०४ - थिरादिछयुग० उच्चा ० ज० जह० सव्वद्धा । इत्थि० -- णवुं स ० -- तिण्णिगदि -- पंचिं ० - चदुसरीर - दोअंगो ०-- पसत्य०४ - तिण्णिआणु०-अगु०३ - आदाउज्जो ०--तस०४ - णिमि० - णीचा ० ज० ज० ए०, उ० आवलि० सं० । अजह • सव्वद्धा । तिण्णिआउ० ज० ज० ए०, उ० आवलि० असं ० । अजह० ज० ए०, उ० पलिदो॰ असंखें । एवं ओघभंगो कायजोगि ओरालि० णवुंस० - कोधादि०४मदि० - सुद० - असं ज० - अचक्खु०- भवसि ० - मिच्छा० - आहारए ति ।
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४०६. रियादि याव अणाहारए ति एसिं संखेज्जजीविगा तेसिं ज० ज० ए०, उ० संखेज्ज० । अज० सव्वद्धा । एर्सि असंखेंज्जजीविगा तेसिं ज० ज० ए०, उ० आवलि० असंखे॰ । अज० सव्वद्धा । एसिं अनंतरासी० तेसिं ज० सव्वद्धा । सव्वाणं अजहणणं. अणुभागबंधकाले अप्पष्पणो पगदिकालो कादव्वो । एदेण बीजेण दवं जहण्णुक० काले० पुढवि०० आउ० तेउ०- वाउ०- बादरवणप्फदिपत्तेयाणं च किंचि
वर्णचतुष्क, उपघात, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यवायु, मनुष्यगति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर आदि छह युगल चौर
गोत्र जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तीन गति, पञ्च ेन्द्रियजाति, चार शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, तीन अनुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, आतप, उद्योत, त्रसचतुष्क, निर्माण और नीचगोत्र के जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। तीन आयुओंके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । उसी प्रकार के समान काययोगी, श्रदारिककाययोगी, नपुंसक वेदी, क्रोधादि चार कपायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचतुदर्शनी, भव्य मिध्यादृष्टि और श्राहारक जीवोंके जानना चाहिए ।
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४०६. नरकगति से लेकर अनाहारक मार्गणा तक जिनके संख्यात संख्यावाले स्वामी हैं, उनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। जिनके असंख्यात जीव स्वामी हैं, उनके अन्य अनुभागके बन्धक जीवों का जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। जिनके अनन्त जीव स्वामी हैं, उनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । तथा सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका काल अपने- अपने प्रकृतिबन्धके कालके समान करना चाहिए। इस बीजपदके अनुसार जघन्य और उत्कृष्ट काल जान लेना चाहिए। किन्तु पृथिवी - कोयिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवों में
१. ता० प्रतौ एसं (सिं ) इति पाठः ।
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