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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे सव्वसुहुमाणं दोआउ० एइंदियभंगो। सेसाणं दोपदा सव्वद्धा।।
४०७, अवगद०-सुहुमसं० सव्वपग० उ० ज० ए०, उ० संखेज्ज. अणु० ज० ए०, उ. अंतो'। सेसाणं णिरयगदीणं याव सण्णि ति एसिं परिमाणेण संखेंज० तेसिं उ० ज० ए०, उ० संखेजस० । एसिं परिमाणेण असंखेज्जा तेसिं० उक्क० ज० ए०, उ. आवलिगा० असंखें । णवरि बादरपुढ०-आउ०-तेउ०-वाउ०बादरवणप्फदिपत्तेयअपज्जत्ता० आउगवज्जाणं सव्वासिं पगदीणं दोपदा सव्वद्धा ति । तिरिक्खाउ० उक्क० णिरयाउभंगो। अणुक्क० सव्वद्धा। मणुसाउ० ओघो। एसि परिमाणे अणंता तेसिं सव्वद्धा। अणुक्क० अणुभागबंधो सव्वेसि अप्पप्पणो पगदिकालो एदेण बीजेण याव अणाहारए ति णेदव्वं ।
__ एवं उकस्सकालो समत्तो। ४०८. जह० पगदं। दुवि० ओघे०-आदेओघे० पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०. सोलसक०--सत्तणोक०-आहारदुग०--अप्पसत्य०४-उप०-तित्थ० पंचंत० ज० ज० ए०, जीव सर्वदा हैं। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। सब सूक्ष्म जीवोंमें दो श्रायुओंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है। तथा शेष प्रकृतियोंके दो पदोंके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है।
विशेषार्थ-यहाँ एकेन्द्रियोंमें तिर्यञ्चायु और उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असं. ख्यात होनेसे उनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इसी प्रकार सब काल घटित कर लेना चाहिए।
४०७. अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। नरकगतिसे लेकर संज्ञीमार्गणा तक शेष जितनी मार्गणाएँ हैं, उनमेंसे जिनका परिमाण संख्यात है उनमें उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। जिनका परिमाण असंख्यात है, उनमें उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त,बादर वायुकायिक अपर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंके दो पदोंके बन्धक जीव सर्वदा हैं। मात्र तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका काल नरकायुके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । तथा मनुष्यायुका भङ्ग ओषके समान है। तथा जिनका परिमाण अनन्त है,उनमें सर्वदा काल है। सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका काल अपने-अपने प्रकृ. तिबन्धके कालके समान है।इस प्रकार इस बीजके अनुसार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए ।
इस प्रकार उत्कृष्ट काल समाप्त हुआ। ४०८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्य, सोलह कषाय, सात नोकषाय, आहारकद्विक, अप्रशस्त
१. ता. प्रतौ अणु० उ० ज० ए० संखेज्ज. अणु० ज० ए० उ० [एतचिन्हान्तर्गतः पाठोड धिकः प्रतीयते] अंतो०, प्रा. प्रतौ अणु० न० ए०, उ० संखेज्जा, अणु० ज० ए०, उ. अंतो० इति पाठः।
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