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________________ २१२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे पंचणा०-णवदंस-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-तिण्णिगं०-चदुजा०-ओरा०पंचसंठा-ओरा०अंगो०-छस्संघ०-अप्पसत्य०४-तिण्णिआणु०-उप०-आदा०--उज्जो०अप्पसत्य०-यावर४-अथिरादिछ०--णीचा०-पंचंत० उक्कस्सअणुभागबंधगा केवचिरं कालादो होंति ? जहण्णेणं एगसमयं । उक्कस्सेण आवलियाए असंखेंजदिभागो । अणुक० अणुभाग० सव्वद्धा। सादा०-तिरिक्खाउ०--देवगदि०-पंचिं०-चदुसरीरसमचदु०--दोअंगो०--पसत्य०४-देवाणु०--अगु०३-पसत्थवि०--तस०४-थिरादिछ०-- णिमि०-तित्थ०-उच्चा० उ० ज० एग०, उ० संखेंजस० । अणुक० सव्वदा । णिरयाउ० उ० ज० ए०, उ० आवलि० असंखें । अणु० ज० ए०, उ० पलि. असं० । दोआउ० उ० ज० ए०, उ० संखेजस० । अणु० ज० ए०, उ० पलिदो० असंखें । एवं ओघभंगो पंचिंदिय-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरो०इत्थि०-पुरिस०-णवूस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०-चक्खु०-अचक्खु०-भवसि०मिच्छा०-सण्णि०-आहारए ति । णवरि चदुण्णं आउगाणं अणुक्क० बंधगा असंखेज'रासीणं अप्पप्पणो पगदिकालो कादव्वो। है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तीन गति, चार जाति, औदारिकशरीर, पाँच संस्थान, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तीन आनुपूर्वी, उपघात, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। सातावेदनीय, तिर्यश्चायु, देवगति, पञ्चन्द्रियजाति, चार शरीर, समचतुरस्त्र संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्तवर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। नरकायुके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। दो आयुओंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इस प्रकार ओघके समान पञ्चद्रियद्विक, सद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात संख्यावाली राशियोंमें चार आयुओंके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका अपनी-अपनी प्रकृतियोंका जो बन्धकाल हो,वह कहना चाहिए। विशेषार्थ-यहाँ नाना जीवोंकी अपेक्षा प्रत्येक प्रकृतिका बन्ध-काल कितना है,इसका विचार १. ता. प्रतो पंचणा० असादा० मिच्छ• सोलसक• तिण्णिग० इति पाठः । २. तो० प्रतौ होति होति (१) जहण्णण इति पाठः । ३. ता. प्रतौ सपहा (दा) इति पाठः । ४. ता.पा. प्रत्योः बंधगा लो० असंखेज्ज० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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