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________________ २१० महापंधे अणुभागपंपाहियारे ओरा०--तेजा.--क०--पसत्य०४--अगु०३-उज्जो०--बादर-पन्जा--पत्ते--णिमि० ज० अह-तेरह०, अज० सव्वलो० । सेसाणं मदि०भंगो। ४०३. सासणे सव्वविसुद्धाणं ज. अह०, अज. अह-बारह० । दोबाउ०मणुसगदिदुर्ग ज. अज. अहचों। देवाउ० खेत । देवगदि०४ ज. अज० पंचों । तिरिक्खगदितिगं ज० खेत्त०, अज. अह-बारह० । सेसाणं ज. अज. अह-बारह० । मिच्छादिहि० मदि०भंगो। स्पर्शन किया है । औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। विशेषार्थ-अभव्योंमें चारों गतिके संज्ञी जीव पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभागबन्ध करते हैं। यह बन्ध नीचे छह व ऊपर छह राजूके भीतर यथायोग्य मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम पाठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। औदारिकशरीर आदिका नीचे छह और ऊपर सात राजूके भीतर यथायोग्य मारणान्तिक समुद्घातके समय भी जघन्य अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है।। ४०३. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों में सर्व विशुद्ध प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और मनुष्यगतिद्विकके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवायुका भंग क्षेत्रके समान है। देवगतिचतुष्कके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तिर्यश्चगतित्रिकके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मिथ्यादृष्टि जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। विशेषार्थ-सर्व विशुद्ध परिणामों से जघन्य बँधनेवाली प्रकृतियाँ ज्ञानावरणादि हैं। यहाँ चारों गतिके संज्ञी जीव इनका जघन्य अनुभागबन्ध करते हैं । मारणान्तिक समुद्घातके बिना इनका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। इनके अजघन्य तथा जिन प्रकृतियोंका यहाँ नामोच्चारके साथ स्पर्शन नहीं कहा गया है, उनके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण है,यह स्पष्ट ही है; क्योंकि उनका यह दोनों प्रकारका अनुभागबन्ध नीचे पाँच और ऊपर सात इस प्रकार कुल बारह राजूके भीतर मारणान्तिक समुद्घात करनेवालोंके भी होता है । आयुकर्मका बन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय नहीं होता और मनुष्यगतिद्विकका बन्ध मारणान्तिक समुद्घातमें होकर भी मनुष्योंमें मारणान्तिक समुद्घात करनेवालोंके ही सम्भव है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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