SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ४००. तेऊए पंचणा०-णवदंस-मिच्छ०-सोलसक०-छण्णोक-अप्पसत्य०४उप०- पंचंत० ज० खेत्त०, अज. अह-णव० । सादासाद०-तिरि०-एइंदि०-ओरा०तेजा-[ क०-] हुंड०--पसत्थव०४-तिरिक्रवाणु०-अगु०३-उज्जो०-थावर०-बादरपजत्त०-पत्ते-थिरादितिण्णियु०-दूभग--अणादें-णिमि०--णीचा० ज०. अज. अहणव० । इत्थि०-दोआउ०-मणुस०-पंचिं०-पंचसंठा०-ओरा०अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु०. आदा०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर०--आदें--तित्थ०-उच्चा० ज० अज. अहचों । पुरिस० ज० खेत०, अज. अहः। णqसगे सोधम्मभंगो । देवाउ०-आहारदुर्ग खेत । देवगदि०४ ज० अज० दिवडचोद्द० । एवं पम्माए वि। णवरि सव्वाणं रज्जू० अहचों । देवगदि०४ पंचचों । तिर्यञ्चोंके समान कहा है । वह स्पर्शन यहाँ भी प्राप्त होता है, इसलिए मनुष्यायुका भङ्ग नपुंसकोंके समान कहा है । जो तिर्यश्च और मनुष्य नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं,उनके भी नरकगतिद्विक और वैक्रियिकद्विकका जघन्य अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजप्रमाण कहा है। नील और कापोत लेश्यामें तिर्यश्चगतित्रिकका स्वामी बदल जानेसे स्पर्शन बदल जाता है। शेष सब स्पर्शन कृष्णलेश्याके ही समान है। मात्र नील लेश्या पाँचवें नरक तक और कापोत लेश्या तीसरे नरक तक होती है, इसलिए जहाँ कुछ कम छह राजू स्पर्शन कहा है,वहाँ कुछ कम चार और कुछ कम दो राजू स्पर्शन कहना चाहिए। ४००. पीतलेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, छह नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ और कुछ कम नौ राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, तियश्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, स्थावर, बादर पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर आदि तीन युगल, दुभंग, अनादेय, निर्माण और नीचगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, दो आयु, मनुष्यगति, पञ्चन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, श्रादेय, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पुरुषवेदके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नपुंसकवेदका भङ्ग सौधर्मकल्पके समान है। देवायु और आहारकद्विकका भङ्ग क्षेत्रके समान है। देवगतिचतुष्कके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पद्मालेश्या में भी जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ सबके कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहने चाहिए। तथा देवगतिचतुष्कके कुछ कम पाँच बटे चौदह राजू कहने चाहिए। _ विशेषार्थ—यहाँ जिन प्रकृतियोंका एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय जघन्य, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy