SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०७ फोसणपरूवणा ३६६. किण्णाए पंचणा०-णवदंस०--मिच्छ० -सोलसक०-सत्तणोक०-तिरिक्खगदितिग-अप्पसत्थ०४-उप०-आदा०-पंचंत० ज० खेत्त०, अज० सव्वलो० । सादादिदंडो ओघो । इत्थि०-णस०-पंचिंदि०-ओरा०-तेजा०-०-ओरा अंगो०-पसत्य०४अगु०३-उज्जो०-तस०४-णिमि० ज० छ०, अज० सव्वलो। दोआउ०--देवगदिदुग०-तित्थ० ज० अज० खेत । मणुसाउ० णqसगभंगो । णिरयगदिदुग-वेन्वि०वेवि०अंगो० ज० अज० छच्चों । एवं णील-काऊणं। गवरि अप्पप्पणो रज्जू भाणिदव्वा । तिरिक्ख०३ एइंदियभंगो। --- rrrrrrrrrrrr. وفي عيج جی بی بی بی بی سی کی مد مدعی بی سی سی کی द्घातके समय भी सम्भव है। इनका तथा देवायु और तीर्थङ्कर प्रकृतिके सिवा शेष प्रकृत्तियों का अजघन्य अनुभागबन्ध तो मारणान्तिक समुद्घातके समय सम्भव है ही। इसलिए यह सब स्पशन कछ कम छह बटे चौदह राजप्रमाण कहा है तथा सातावेदनीयदण्डकके सिवा शेष प्रकृतियो का जघन्य और देवायु व तीर्थक्कर प्रकृतिका जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय सम्भव नहीं है, इसलिए इस अपेक्षासे यह स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। मात्र तीर्थङ्कर प्रकृतिका अजघन्य अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी होता है, पर उससे स्पर्शनमें कोई विशेषता नहीं आती। शेष कथन सुगम है। ३९६. कृष्णलेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, तिर्यश्चगतित्रिक, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, आतप और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग ओघ के समान है। स्त्रीवेद, नपुंसक्वेद, पञ्चोन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक श्राङ्गो. पाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, त्रसचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, देवगतिद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृति के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । मनुष्यायुका भङ्ग नपुंसकोंके समान है। नरकगतिद्विक, वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार नील और कापोत लेश्यामें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनीअपनी राजू कहनी चाहिए । तथा तिर्यश्चगतित्रिकका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है। विशेषार्थ-प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियों के स्वामियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे यहाँ इन प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। तथा कृष्ण लेश्याका स्पर्शन सब लोक होनेसे यहाँ इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक कहा है। आगे भी सब लोक प्रमाण स्पर्शनका इसी प्रकार स्पष्टीकरण करना चाहिए। सातावेदनीय दण्डकके स्पर्शनका स्पष्टीकरण ओघके समान कर लेना चाहिए। नीचे छह राजू प्रमाण यथायोग्य स्पशेन करनेवाले जीवों के भी स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागबन्ध सम्भव है। अतः इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। नरकायु, देवायु और देवगतिद्विकका जघन्य अनुभागबन्ध तिर्यश्च और मनुष्य तथा तीर्थङ्कर प्रकृतिका जघन्य अनुभागबन्ध मनुष्य करते हैं, अतः इन प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। नपुंसकोंमें मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy