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________________ wwamaniramor फोसणपरूवणा २०३ ३६४. पुरिसेसु पढमदंडओ विदियदंडओ इत्थिभंगो। इत्थि०--मणुस०-पंचसंठा०-ओरा०अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु०-आदा०-पसत्य-सुभग-सुस्सर-आदें-उच्चा० ज० अज. अहचोद० । पुरिस०--दोआउ०-तित्थ० ज० खेत०, अज. अह । णवूस. ज. अह०, अजह० अहचोदस० सव्वलो० । दोआउ०-तिण्णिजा०-आहारदुगं ज. अज० खेतः । वेउव्वियछ० ओघं । पंचिं०-अप्पसत्थ०-तस-दुस्सर० ज० घटित कर लेना चाहिए । औदारिकशरीरके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण है, यह स्पष्ट ही है। तैजसशरीर आदिका जघन्य अनुभागबन्ध स्वस्थान-विहारादिके समय तो होता ही है,पर नीचे छह राजू और ऊपर सात राजू कुल कुछ कम तेरह राजुके भीतर मारणान्तिक समुद्घातके समय भी होता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ व कुछ कम तेरह बटे चौदह राजप्रमाण कहा है । जो नीचे नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं,उन तिर्यञ्च और मनुष्योंके भी वैक्रियिकद्विकका जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है और इनका अजघन्य अनुभागबन्ध देवों व नारकियों में मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है। इसलिए इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका जघन्य अनुभागबन्ध नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात करते समय नहीं होता। इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । तथा इनका अजघन्य अनुभागबन्ध स्वस्थान विहारादिके समय तो होता ही है,पर नीचे व ऊपर कुछ कम बारह राजूके भीतर मारणान्तिक समुद्घातके समय भी होता है, इसलिए इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ व कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण भी कहा है। बादर प्रकृतिका जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्ध स्वस्थान विहारादिके समय भी होता है और नीचे छ व ऊपर सात राजूके भीतर मारणान्तिक समुद्घात करते समय भी होता है । इसलिए इसके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ व कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। तिर्यञ्च और मनुष्य स्वस्थानमें व एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात करते समय सूक्ष्म आदिका दोनों प्रकारका अनुभागबन्ध करते हैं, इसलिए इनके दोनों प्रकारके अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है। ३६४. पुरुषोंमें प्रथम दण्डक और दूसरे दण्डकका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। स्त्रीवेद, मनुष्यगति, पाँच संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेद, दो आयु और तीर्थङ्करके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, तीन जाति और आहारकद्विकके जघन्य और अजघन्य अनुभागके • बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। वैक्रियिकशरीर आदि छहका भङ्ग ओघके समान है। पश्चन्द्रियजाति, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस और दुःस्वरके जघन्य और अजघन्य अनुभागके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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