SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे दोआउ०-मणुसग०-चदुजा०--पंचसंठा०-ओरा०अंगो०--छस्संघ०-मणुसाणु०-आदा०दोविहा०-तस०--सुभग-दोसर०-आदें-उच्चा० ज० अज० लो० असं । ओरा०-तेजा.क०-पसत्थ०४-अगु०३-णिमि० ज० लो० असं० सव्वलो०, अज० सव्वलो० । उज्जो०-बादर-जस० ज० अजे० सत्तचों। ३८८, बादरपुढ०-[ आउ०] अपज. पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०सत्तणोक०--अप्पसत्थ०४-उप०-पंचंत० ज० खेत०, अज० सव्वलो० । दोवेद०-- तिरिक्ख०-एइंदि०--ओरा-तेजा-क०-हुंड०-पसत्थ०४-[तिरिक्खाणु०- ] अगु०३दो आयु, मनुष्यगति, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, बस, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक और निर्माणके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत, बादर और यश:कीर्तिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-बादर पृथिवीकायिक और बादर जलकायिक जीव एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभागबन्ध नहीं करते, मात्र अजघन्य अनुभागबन्धके होनेमें कोई बाधा नहीं है। अतः इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्रमसे लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है । सातावेदनीय आदिका जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी होता है। अतः इनके दोनों प्रकारके अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण कहा है । स्त्रीवेद आदि प्रायः त्रस सम्बन्धी प्रकृतियाँ हैं। दो आयुका मारणान्तिक समुद्घातके समय बन्ध नहीं होता और बादर पृथिवीकायिक जीवोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके ही मारणान्तिक समुद्घातके समय प्रातपका बन्ध होता है। इसलिए इन स्त्रीवेद आदि प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। औदारिकशरीर आदिका स्वस्थानमें और मारणान्तिक समुदघातके समय दोनों अवस्थाओं में जघन्य अनुभागबन्ध सम्भव है। अतः इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोकप्रमाण है,यह स्पष्ट ही है । उद्योत आदिका स्वस्थान आदिमें और ऊपर सात राजुके भीतर मारणान्तिक समुद्घात करनेकी अवस्थामें भी दोनों प्रकारका अनुभागबन्ध सम्भव है। अतः इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । ____३८८. बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त और बादर जलकायिक अपर्यात जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वेद,तियश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, तियंञ्चगत्यानु १. ता० प्रती जस० अज० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy