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________________ कोसपरूवणा सादासाद० - तिरिक्खा उ० - दोगदि ० पंचजा ० - वस्संठा ० - इस्संघ० - दोआणु ०--दोविहा०तसथावरादिदसयुग ० - दोगो० ज० अज० सव्वलो० । मणुसाउ० तिरिक्खोघं । ओरा०-तेजा० क० - पसत्थ०४ - श्रगु ०३ - णिमि० ज० लो० असं० सव्वलो०, अज० सव्वलो० । उज्जो' ० ज० सत्तचों०, अज० सव्वलो० । 0 - ३८७. बादरपुढ० - आउ० पंचणा० णवदंस०--मिच्छ० - सोलसक० -- सत्तणोक ० अप्पसत्थ०४- उप०- पंचत० ज० खेत्त०, अज० सव्वलो० । सादासाद०-- तिरिक्ख ०एइंदि० - हुंड० - तिरिक्खाणु० - थावर० मुहुम० पज्ज० - अपज्ज० - पत्ते ० साधार०० - थिराथिरसुभासुभ- दूभग-- अणादें.. -- अजस०--णीचा० ज० अज० सव्वलो० । इत्थि० - पुरिस० १६५ किया है और अन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स स्थावर आदि दस युगल और दो गोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक और निर्माणके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजधन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योतके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अजधन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थं - उक्त बादर जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है और ये जीव एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभागबन्ध करते नहीं, अतः इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण कहा । सातावेदनीया सब पृथिवी और जलकायिक जीव जघन्य अनुभागबन्ध करते हैं, अतः इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है । औदारिकशरीर आदिका अजघन्य अनुभागबन्ध करते हुए भी एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है, इसलिए इनके जवन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है। जो ऊपर सात राजूके भीतर मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके उद्योतका जघन्य अनुभागबन्ध सम्भव है; अतः इसके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। पृथिवीकायिक और जलकायिक जीव सब लोकमें पाये जाते हैं, अतः इनमें पाँच ज्ञानावरणादि सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन सब लोकप्रमाण कहा है। मनुष्यायुका भङ्ग स्पष्ट ही है । ३८७. बादर पृथिवीकायिक और बादर जलकायिक जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अजवन्य अनुभागके बन्धक जीवने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, १. ता० प्रतौ श्रसं सव्वलो उज्जो० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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