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________________ फोसणपरूवणा १८७ O ३७६. पंचिंदि० तिरिक्ख ०३ पंचणा० - छदंसणा ०-- अहक० छण्णोक० -तेजा०क० --पसत्थापस ०४ - अर्गु ०४ - पज्ज० -- पत्ते ० - णिमि० - पंचंत० ज० छ०, अज० लो० असं० सव्वलो० | थीणगिद्धि ०३ - मिच्छ० - अडक० णवुंस० ज० खेत्त०, अज० लो० असं • सव्वलो ० । सादासाद० - तिरिक्ख० एइंदि० - ओरा०-- हुंड० - तिरिक्खाणु० थावरादि४- थिराथिर - सुभासुभ- दूर्भाग० - अणादे० - अजस०-णीचा० ज० अज० लो० असं सव्वलो ० ० । इत्थि० ज० अज० दिवड० । पुरिस० - णिरय ० -- णिरयाणु० - अप्पसत्थ० - दुस्सर० ज० ज० बच्चोंद० । चदुआउ०- मणुस ० -- तिष्णिजा० - [ चदुसंठा०- ] ओरा० अंगो०-- छस्संघ० - मणुसाणु० आदाव० ज० अज० खैत० । देवग०- समचदु०देवा ०- पसत्थ० - सुभग ० -- २ --सुस्सरं- आदें०6- उच्चा० ज० पंच चो०, अज० छच्चों० । पंचिंदि० - वेडव्वि० - वेडव्वि० अंगो०-तस० ज० छ०, अज० बारह ० । उज्जो ० - जसगि० ज० अज० सत्तचों० । बादर० ज० छ०, अज० तेरह० । ' ३७. न्द्रिय तिर्यञ्च त्रिकमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, छह नोक पाय, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णंचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धितीन, मिध्यात्व, आठ कषाय और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर आदि चार, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रके जघन्य और अजधन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेदके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पुरुषवेद, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार आयु, मनुष्यगति, तीन जाति, चार संस्थान, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और आपके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। देवगति, समचतुरस्रसंस्थान, देवगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभाग बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पश्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकाङ्गोपाङ्ग और त्रसके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह वटे चौदह राजू और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत और यशःकीर्तिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादरके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू और अजधन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। १. ता० प्रा० प्रत्योः अगु०३ इति पाठः । २. ता० प्रा० प्रत्योः चदुबादि श्रोरा • अंगो ● इति पाठः । ३. श्रा० प्रतौ पसत्थ० सुस्सर० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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