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________________ १८६ महापंथे अणुभागबंधाहियारे थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अहक०--णqस०-ओरा०अंगो०--आदाव० ज० खेतभंगो। अज. सव्वलो० । साददंडओ ओघो। इत्थि० ज० दिवड्ड०, अज० सव्वलो । दोआउ०-वेव्वियछ० ओघं । मणुसाउ० ज. अज. लो. असंखें सव्वलो० । ओरा. ज. लो० असंखें सव्वलो०, अज. सव्वलो० । तिरिक्व०-तिरिक्वाणु०णीचा. खेत्तभंगो । उ० ज० सत्तचौद०, अज० सव्वलो० । राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, आठ कषाय, नपुंसकवेद, औदारिक माङ्गोपाङ्ग और आतपके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीयदण्डकका भङ्ग पोषके समान है । स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और वैक्रियिकछहका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यायुके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । औदारिकशरीरके जघन्य अनुभागके बन्धक जीषोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तिर्यश्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग क्षेत्रके समान है। उद्योतके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-तिर्यञ्चोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण होनेसे यहाँ एकेन्द्रियोंमें बँधनेवाली प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक कहा है। जहाँ विशेषता होगी उसे अलगसे कहेंगे। नारकियोंमें और देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले जीवोंके भी स्वामित्वके अनुसार पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण स्पर्शन कहा है। स्त्यानगृद्धि आदिका जघन्य अनुभागबन्ध पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चोंके स्वस्थानमें ही सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाले तिर्यञ्चोंके ऐशान कल्प तकके देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करना सम्भव है, इसलिए इसके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजप्रमाण कहा है। मनुष्यायुका जघन्य अनुभागबन्ध एकेन्द्रिय जीव भी करते हैं। किन्तु इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है और अतीत स्पर्शन सब लोक प्रमाण है। इसके अजघन्य अनुभागबन्धकी अपेक्षा भी यही स्पर्शन जानना चाहिए । जो एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके भी औदारिकशरीरका जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इसके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक प्रमाण स्पर्शन कहा है । तिर्यश्चगतित्रिकका जघन्य अनुभागबन्ध बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीव करते हैं, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान लोकके संख्यातवें भामप्रमाण प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। जो ऊपर बादर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके भी उद्योतका जघन्य अनुभागबन्ध होता है. इसलिए इसके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है। शेष कथन सुगम है। 1. पा प्रतौ आदाउ० इति पाठः। २. आ. प्रतौ असंखे० सव्वलो. तिरिक्ख० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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