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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अहौँ । देवाउ०-आहारदुर्ग ओघं । देवगदि०४ उ० खेस०, अणु० दिवडचॉद्द० । पंचिं०-समचदु०-पसत्य-तस०-सुभग-सुस्सर-आदें-तित्थय०-उच्चा० उ० खेशभंगों'। अणु० अणुभा० अह। ओरा०-उज्जो० उ० अह चों, अणु० अह-णवै० । एवं पम्माए वि । णवरि अह चों। देवगदि०४ अणु० पंच चौ। विहायोगत्ति और दुःस्परके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवायु और आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। देवगतिचतुष्कके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवान कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पश्चन्द्रिय जाति, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर, आदेय, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। औदारिकशरीर
और उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पद्मलेश्यामें भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसमें कुछ कम आठ घटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहना चाहिए। तथा देवगतिचतुष्कके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरणादि का उत्कृष्ट अनुभागबन्ध ऐशान कल्पतकके देव करते हैं और मारणान्तिक समुद्घातके समय भी इनका बन्ध होता है, अतः इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू कहा है । सातावेदनीय आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अप्रमत्तसंयत जीव करते हैं, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्रके समान स्पर्शन कहा है । इसी प्रकार अन्य प्रशस्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धके विषयमें जानना चाहिए। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन पाँच ज्ञानावरणादिके समान है,यह स्पष्ट ही है। जो देव एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समु
द्घात करते हैं,उनके स्त्रीवेद आदिका बन्ध नहीं होता, अतः इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है । देवायु और आहारकद्विक का भङ्ग श्रोधके समान है.यह स्पष्ट ही है। जो देवोंमें मारणान्तिक समदघात करते हैं उनके भी देवगतिचतुष्कका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्पर्शन कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। जो देव एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं उनके पश्चन्द्रियजाति आदिका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। औदारिकशरीरका सम्यग्दृष्टि देव
और उद्योतका तत्प्रायोग्य विशुद्ध देव उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है और इनका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव होनेसे इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजु कहा है । पद्मलेश्यामें मरकर देव एकेन्द्रिय नहीं होता, इसलिए इसमें कुछ कम आठ वटे व नौ बटे चौदह राजूके स्थानमें केवल कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है।
१. प्रा. प्रतौ• उच्चा० खेत्तभंगो इति पाठः। २. ता. प्रतौ अडचो० अट-णव० इति पाठः ।
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