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________________ फोसणपरूवणा ३७१. तेऊएं' पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक०तिरिक्ख०-एइंदि०-हुंड-अप्पसत्थ०४-तिरिक्ख०-उप०-थावर-अथिरादिपंच०-णीचा०पंचंत० उ० अणु० अह-णव० । सादा०-तेजा ०-क०-पसत्य०४-अगु०३-बादर-पज्जत्तपत्ते-थिर-सुभ-जस०-णिमि० उ० खेत०, अणु० अह-णव० । इत्थि०-पुरिस०-दोआउ०मणुस०२-चदुसंठा-ओरा०अंगो०-छस्संघ०-आदा०-अप्पसत्थ०-दुस्सर० उ० अणु० विशेषार्थ-प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके स्वामीको देखनेसे विदित होता है कि इन लेश्याओंमें परस्पर तीन गतिके संज्ञी जीवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले जीवोंके यथायोग्य उक्त प्रकृष्ट अनुभागबन्ध होता है और इस दृष्टिसे इन लेश्याओंका क्रमसे स्पर्शन कुछ कम छह, कुछ कम चार और कुछ कम दो बटे चौदह राजूप्रमाण है, अतः यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। तथा एकेन्द्रियोंके भी तीनों लेश्याएं होती हैं,अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सर्व लोक कहा है। सातावेदनीय आदिका उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध सम्यग्दृष्टि जीवोंके होता है। मात्र तिर्यश्चायु, आतप और उद्योत इसके अपवाद हैं सो इनका मारणान्तिक समुद्घातके समय बन्ध नहीं होता, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन ज्ञानावरणादिके समान समझ लेना चाहिए । जो एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके भी हास्य आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, अत: इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्वलोक प्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सर्वलोक प्रमाण स्पर्शन है, यह स्पष्ट ही है। यहाँ इतनी विशेषता है कि नील और कापोतलेश्यामें मारणान्तिक समुद्घातके समय भी हास्य और रतिका नारकी जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं, इसलिए इन दो प्रकृतियोंकी अपेक्षा असातावेदनीयके समान स्पर्शन बन जाता है। वैसे सामान्य नारकियोंमें इन दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू बतला आये हैं। पर यहाँ कृष्ण लेश्यामें वह लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्यों रहने दिया गया है,यह अवश्य ही विचारणीय है । जो तिर्यश्च और मनुष्य नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं,उनके नरकगतिद्विकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है,इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह, कुछ कम चार और कुछ कम दो बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। इसी प्रकार वैक्रियिकद्विकके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन भी घटित कर लेना चाहिए । शेष कथन सुगम है। ___३७१. पीत लेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलहकषाय, सात नोकषाय, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, स्थावर, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट और अनुस्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, यशःकीर्ति और निर्माणके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, दो आयु, मनुष्यगतिद्विक, चार संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, आतप, अप्रशस्त १. श्रा० प्रती छ-चत्तारि तेउए. इति पाठः । २. ता. श्रा. प्रत्योः मणुस. ४ चदुसंठा इति पाठः। ३ ता. पा. प्रत्योः अप्पसत्थ४ दुस्सर० इति पाठः । २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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