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________________ Mirrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrwar १७० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ३६५. इत्थिवे० पंचणा-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०हुंड-अप्पसत्थ०४-उप०-अथिरादिपंच०--णीचा०-पंचंत० उ० अह-तेरह०, अणु० अहचौ. सव्वलो० । सादा०-तेजा-क०-पसत्थ०४-अगु०३-पज्ज-पत्ते-थिर-सुभणि मि० उ० खेतभंगो, अणु० अ० सव्वलो० । इत्थि०-पुरिस०-मणुस०-चदुसंठा०ओरा अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु'०-आदाव० उ० अणु० अह । हस्स-रदि उ० अणु० अह. सव्वलो० । दोआउ०-तिण्णिजादि-आहारदुग-तित्थय० उक्क० अणु० खेतभंगो । दोआउ०-समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदें-उच्चा० उ० खेत्तभंगो, अणु० अह । णिरयगदिदुग० उ० अणु० छच्चों । तिरि०-एइंदि०-तिरिक्खाणु०-यावर० उ. अह-णव०, अणु० अह. सव्वलो० । देवगदिदुग० उ० खेत०, अणु० छच्चों । स्पर्शनका विचार करते हैं तो वह सब क्षेत्रके समान ही प्राप्त होता है, इसलिए इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। एकेन्द्रियजाति और स्थावरका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध ऐशान कल्पतकके देव करते हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजु प्रमाण कहा है। तथा इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सर्व लोक है. यह स्पष्ट ही है। अम्प्राप्तामृपाटिकासंहनन आदि तीन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध नारकी और सहस्त्रार कल्प तकके देव करते हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन नीचे छह और ऊपर पाँच इस प्रकार कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है और इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन पूर्ववत् सब लोक कहा है। तीन जाति आदिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का जो स्पर्शन कहा है,वह स्पष्ट ही है। ३६५. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ और निर्माणके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यगति, चार संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और आतपके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू. प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । हास्य और रतिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकममाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो आयु, तीन जाति, आहारकद्विक और तीर्थङ्करके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दो आयु, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकगतिद्विकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और स्थावरके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट १. प्रा० प्रतौ भणुमाउ० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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