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________________ फोसणपरूवणा १६९ णवदंस०-असादी०-मिच्छ०--सोलसक०--णवणोक०--तिरिक्ख०-पंचसंग०-चदुसंघ०अप्पसत्थ०४-तिरिक्वाणु०-उप०--अथिरादिपंच०-णीचा०-पंचंत० उ० बारह०, अणु० सव्वलो । सादा०-पंचिं०-तेजा०--क०-समचदु०--पसत्थव०४-अगु०३-पसत्यवि०तस०४-थिरादिछ०-णिमि०-उच्चा० उ० छ०, अणु० सव्वलो० । मणुसगदिपंचग० उ० अणु० तं चेव । देवगदिपंचग० खेतभंगो। [ एइंदिय०-थावर० उ० दिवडचौदस०, अणु० सव्वलो० । असंप०-अप्पसत्थ०-दुस्सर० उ० ऍकारस०, अणु० सव्वलो०] तिण्णिजादि-आदाउज्जो०-सुहुम-अपज्ज०-साधार० उ० खेतभं०, अणु० सव्वलो। क्षेत्रके समान भङ्ग है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यश्चगति, पाँच संस्थान, चार संहनन, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, पश्चन्द्रिय जाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यगतिपञ्चकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन पूर्वोक्त ही है। देवगतिपञ्चकका भङ्ग क्षेत्रके समान है। एकेन्द्रियजाति और स्थावरके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असम्प्राप्तामृपाटिकासंहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीन जाति, भातप, उद्योत, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-वैक्रियिकमिश्रकाययोगी. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इन मार्गणाओं में सब स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। जो चारों गति के संज्ञी पश्चन्द्रिय जीव कार्मणकाययोगी होते हैं, उनके पाँच ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजू प्रमाण कहा है और कार्मणकाययोगका स्पर्शन सब लोक है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण कहा है। सम्यग्दृष्टि कार्मणकाययोगी जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू प्रमाण होनेसे सातावेदनीय आदिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण है,यह स्पष्ट ही है। मनुष्यगतिपञ्चक का उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्यग्दृष्टि देव और नारकी करते हैं, इसलिए इनका भङ्ग सातावेदनीयके समान ही कहा है। देवगतिचतुष्कका सम्यग्दृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य तथा तीर्थकर का तीन गतिके सम्यग्दृष्टि जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं। तथा देवगतिचतुष्कका बन्ध असंज्ञी आदि और तीर्थङ्कर प्रकृतिका तीन गति के संज्ञी जीव बन्ध करते हैं। ऐसे जीवोंका यदि १. ता० प्रती पंचणा० असादा० इति पाठः। २. ता० श्रा० प्रत्योः पंचसंघ० इति पाठः । ३. ता. श्रा० प्रत्योः उप० अप्पसत्थ. अथिरादिपंच० इति पाठः। २२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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