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________________ १६८ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे पंचसंघ०--अप्पसत्थ०--दुस्सर० उ० अणु० अह-बारह० । दोआउ०--मणुस०३आदा०-तित्थ० उ० अणु० अह । एइंदि०-थावर० उ० अणु० अह-णव० । पंचिं०समचदु०-ओरालि०अंगो०-वज्जरिस०-पसत्य०-तस-सुभग-सुस्सर-आदें उ० अह०, अणु० अह-बारह० । उज्जो० उ० खेत्तभंगो, अणु० अट्ट तेरह । ३६४. वेउव्वियमि०-आहार-आहारमि० खेत्तभंगो। कम्मइय. पंचणाचौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वर के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगतित्रिक, आतप और तीर्थङ्करके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रियजाति और स्थावरके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पञ्चन्द्रियजाति, समचतुरस्त्रसंस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर और आदेयके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम पाठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । सातावेदनीय आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिकके समय सम्भव न होनेसे इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बर्ट चौदह राजू कहा है। शेष पूर्ववत् जानना चाहिए। स्त्रीवेद आदि एकेन्द्रियजाति सम्बन्धी प्रकृतियाँ नहीं हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू कहा है। कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन तिर्यञ्चोंमें देवों और नारकियोंका समुद्घात कराके ले आना चाहिए। दो आयु आदिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण है, यह स्पष्ट ही है। जो देव एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं,उनका स्पर्शन कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण उपलब्ध होता है और एकेन्द्रियजाति तथा स्थावरका मारणान्तिक समुद्घातके समय उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए यहाँ इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। पञ्चन्द्रियजाति आदिका और सब विचार स्त्रीवेददण्डकके समान है। मात्र मारणान्तिक समुद्घातके समय इनका उत्कृष्ट अनभागबन्ध नहीं होता, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन मात्र कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। उद्योतका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सातवें नरकके नारकीके सम्यक्त्वके अभिमुख होने पर होता है, इसलिए इसके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। ___३६४. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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