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________________ *.man फोसणपरूवणा १७१ पंचिं०-तस० उ० खेत०, अणु० अह-बारह० । ओरालि० उ. अह०, अणु० अहचों सव्वलो। वेउव्वि०-वउव्वि०अंगो० उ० खेत०, अणु० बारह । उज्जो०-जस० उ० खेत्त०, अणु० अह-णव० । णवरि उज्जो० उ० अहः । अप्पस०-दुस्सर० उ० छ०, अणु० अह-बारह० । बादर० उ० खेत्त०, अणु० अह-तेरह० । सुहुम०-अपज्ज०-साधार० उ. अणु० लो० असं० सव्वलो० । एवं पुरिसेमु । णवरि तित्थ० उ० अणु० ओघं । अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगतिद्विकके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चोन्द्रियजाति और त्रसके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। औदारिकशरीरके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकाङ्गोपाङ्गके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत और यशस्कीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूपमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादरके उत्कृष्ट अनुभा बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सूक्ष्म, अप प्ति और साधारणके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ओघके समान है। विशेषार्थ-देवियाँ विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन करती हैं। यद्यपि पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिनी और मनुष्यनी मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन करती हैं, परन्तु पाँच ज्ञानावरणादिके उत्कृष्ट बन्धके समय यदि मारणान्तिक समुद्घात होता है,तो वह त्रस नालीके भीतर नीचे छह राजू और ऊपर सात राजु इस प्रकार कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण ही होता है । यही सब देखकर यहाँ इन प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कहा है। स्पर्शनका उक्त विधिसे निर्देश मूलमें ही किया है। सातावेदनीय आदिके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन पाँच ज्ञानावरणादिके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों के समान ही घटित कर लेना चाहिए । जो तिर्यश्चगति आदि तीनमें उत्पन्न होते हैं,उन्हींके स्त्रीवेद आदिका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्ध सम्भव है और ऐसे स्त्रीवेदी जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण होता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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