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________________ फोसणपरूवणा १६१ क्खोघं । मणुस०-मणुसाणु०--उच्चा० उ० अणु० खेत्त० । सेसाणं उ० लो० संखेंज०, अणु० सव्वलो। ___३५६. बादरपज्जत्तापज. पंचणाणावरणादिथावरदंडओ एइंदियभंगो। एवं [अ] साददंडओ वि । दोआउ०-मणुस०३ उ. अणु० खेत० । गवरि तिरिक्खाउ० उ० अतीतं लोग० संखें। उज्जो०-बादर०-जस० उ० खेत०, अणु० लो० संखें सत्तचोद। सेसाणं तसपगदीणं उ० अणु० लो० संखें । सादादीणं उ० लो. संखेंज०, अणु० सव्वलो०। भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ–एकेन्द्रिय सब लोकमें हैं, इसलिए पाँच ज्ञानावरणादिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण कहा है। तिर्यश्चायुका भङ्ग ओघके समान है और मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है,यह स्पष्ट ही है। मनुष्यगतिद्विक और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध बादर पृथिवीकायिकपर्याप्त प्रादि जीव करते हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध यथायोग्य बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव भी करते हैं, अतः उनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक कहा है। ३५६. बादर एकेन्द्रिय तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि स्थावर दण्डकका भङ्ग एकेन्द्रियों के समान है। इसी प्रकार असातावेदनीयदण्डकका भङ्ग भी जानना चाहिए। दो आयु और मनुष्यगतित्रिकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका अतीत कालीन स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। उद्योत, बादर और यशाकार्तिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम सात बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष त्रस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय आदिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-आयुकर्मका बन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय नहीं होता और बादर एकेन्द्रिय तथा उनके भेदोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनके तिर्यश्चायुके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका अतीत कालीन स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण कहा है । उद्योत आदिका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है, पर ऐसे जीव ऊपर सात राजूके भीतर ही मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजू प्रमाण कहा है। शेष त्रस प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है, यह स्पष्ट ही है। क्योंकि जो एकेन्द्रियों में मारणान्तिक २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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