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फोसणपरूवणा
१५६ ३५३. मणुस०३ पंचणा०-णवदंस०-दोवेदणी-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०ओरा०-तेजा-क०-हुंड०-पसत्यापसत्थ०४-अगु०४-पज्ज०-पत्ते-थिराथिर-सुभासुभदुभग-अणादें अजस०-णिमि०-णीचा०-पंचंत० उ० खेत्त० । अणु'० लो० असं० सव्वलो । हस्स-रदि-तिरिक्व०-एइंदि०-तिरिक्वाणु०-थावरादि०४ उ० अणु० लो. असं० सव्वलो। उज्जो०-बादर-जस० उ० खेत्तं० । अणु० सत्त चौ. । सेसाणं उ० अणु० खेतभं०।
३५४. देवेसु पंचणा०-णवदंस०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक०तिरिक्व०--एइंदि०--हुंड ०--अप्पसत्थ०४-तिरिक्वाणु०--उप०--थावर--अथिरादिपंच०
३५३. मनुष्यत्रिकमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्ड संस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश कीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्र के समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण
और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । हास्य, रति, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और स्थावर आदि चारके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत, बादर और यशःकीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ-मनुष्यत्रिक उत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंके समय एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते, अन्यत्र यह स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है, इसलिए प्रथम दण्डकमें कही गई अप्रशस्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। सातावेदनीय आदि प्रशस्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण है,यह स्पष्ट ही है। तथा इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है; क्योंकि मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा मनुष्योंका उक्त प्रमाण स्पर्शन उपलब्ध होता है। जो मनुष्य एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके भी हास्यादि प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक कहा है। उद्योत आदि तीन प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है,यह स्पष्ट ही है। मारणान्तिक समुद्घातके समय इनका ऐसे मनुष्य भी बन्ध करते हैं जो एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होते हैं, पर ये एकेन्द्रिय जीव ऊपर सात राजूके भीतरके होने चाहिए, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजू कहा है। शेष जितनी प्रकृतियाँ बचती हैं वे सब त्रससम्बन्धी हैं, इसलिए उनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है ।
३५४. देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी,
१. प्रा० प्रती खेत० अणु० खेत्तभंगो अणु० इति पाटः।
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