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________________ फोसणपरूवणा १५३ मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू, है । इन सब अवस्थाओंमें इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव होनेसे इस अपेक्षा उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। इन प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सर्व लोक है यह स्पष्ट ही है। दूसरे दण्डकमें कही गई सातावेदनीय आदिका क्षपकश्रेणिमें, तिर्यञ्चायु और चार जातिका मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च और मनुष्यके तथा उद्योतका सातवें नरकके नारकीके उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है। यतः इनका वर्तमान और अतीतकालीन स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है अतः यह उक्त प्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सर्व लोक है यह स्पष्ट ही है। आगे जिन प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका अतीत कालीन स्पर्शन सर्व लोक कहा है वहाँ भी उनका एकेन्द्रियादि चारों गतियों में बन्ध होता है इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है ऐसा समझना चाहिए। स्त्रीवेद आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिथ्यादृष्टि संज्ञी पञ्चन्द्रिय करते हैं, इसलिए वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहनेका कारण आभिनिवोधिक ज्ञानावरणके ही समान है। कुछ कम बारह बटे चौदह राजू स्पर्शन कहनेका कारण यह है कि इन प्रकृतियोंका बन्ध उन्हीं जीवोंके होता है जो त्रससम्बन्धी प्रकृतियोंका ही बन्ध करते हैं। अतएव इनके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाले जीव ऊपर और नीचे कुछ काम छह छह राजू क्षेत्रका ही स्पर्शन कर सकते हैं जो कुछ कम बारह बटे चौदह राजू होता है। हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवो के वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाणका और अतीत कालीन स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूका स्पष्टीकरण पहलेके ही समान है । हास्य और रतिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध चारों गतिके संज्ञी जीव करते हुए भी ऐसे मनुष्य और तियेच भी करते है जो एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्रात कर रहे हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागले बन्धक जीवोंका अतीत कालीन स्पर्शन सर्व लोक भी कहा है। श्रायुबन्ध मारणान्तिक समुद्धातके समय नहीं होता और संज्ञी पञ्चन्द्रिय तिर्यश्च व मनुष्योंका शेष स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है इसलिए नरकायु आदिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके टन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। इसी प्रकार मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके स्पर्शनका स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। तथा इनका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध वैक्रियिककाययोगके समय भी सम्भव है और मारणान्तिक समुद्वातको छोड़कर विहारादिके समय इसका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है, इसलिए इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है। जो मनुष्य नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं उनके भी नरकगतिद्विकका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू कहा है। इनका बन्ध असंज्ञी आदि ही करते हैं और नरकगतिके योग्य प्रकृतियोंका बम्ध होते समय ही होता है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका भी वही स्पर्शन. कहा है। मनुष्यगति आदिका देव और नारकी तथा प्रातपका नारकियोंके सिवा शेष तीन गतिके जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं। उसमें भी मनुष्योंमें मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले देव और नारकियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं होता। इनके विहारादि शेष पदोंका स्पर्शन इतना ही है। हाँ जो देव विहारादि शेष पदोंसे युक्त हैं और इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहे हैं उनके कुछ कम आठ बटे चौदह राजू स्पर्शन पाया जाता है, इसलिए इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावरका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध देव करते हैं और देवोंका अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। वैक्रियिकद्विकका उत्कृष्ट २० Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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