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________________ १५४ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ३४६. णेरइएसु साद०-पंचिं०-ओरा-तेजा-क०-समचदु०--ओरा० अंगो०वज्जरि०-पसत्थवण्ण०४-अगु०३-उज्जो०-पसत्थ०--तस०४-थिरा दिछ०-णिमि० उ० खेत्तं । अणु० छच्चोद० । दोआउ०-मणुसगदिदुग-तित्थ-उच्चा० उ० अणु० खेत्तभंगो । सेसाणं उ० अणु० छच्चो० । एवं सव्वणेरइगाणं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं । ३५०. तिरिक्खेसु पंचणा०--णवदंस० सादासाद०--मिच्छ ०-सोलसक०-पंच rrrrrrrrrrrrrrrr अनुभागबन्ध क्षपकोणिमें होता है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान और अतीत स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है और वैक्रियिकद्विकका बन्ध करनेवाले मनुष्य और तियश्च ऊपर व नीचे कुछ कम छह छह राजुका स्पर्शन करते हैं, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजु कहा है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणका देव और नारकी बन्ध नहीं करते। साथ ही एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले मनुष्य और तियश्चोंके भी इनका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और अतीत स्पर्शन सब लोक कहा है । तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध क्षपकश्रेणिमें होता है, इसलिए इसके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान और अतीत स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा देवोंमें भी इसका बन्ध होता है, इसलिए इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पशन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालीन स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है। प्रथमादि नरकोंमें और मारणान्तिक समुद्घातके समय इसका बन्ध होनेसे उक्त स्पर्शनमें कोई अन्तर नहीं पड़ता । ३४६. नारकियोंमें सातावेदनीय, पञ्चन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगरुलपत्रिक, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति. त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह और निर्माणके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू है। दो आयु, मनुष्यगतिद्विक, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पशन कुछ कम छह बटे चादह राजू है। इसी प्रकार सब नारकियोंके अपना अपना स्पर्शन जानना चाहिए। विशेषार्थ-उद्योतके सिवा प्रथम दण्डकमें कही गई सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्यग्दृष्टि नारकी और उद्योतका सम्यक्त्वके अभिमुख हुआ सातवें नरकका नारकी उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम छह बटे चौदह राजू है यह स्पष्ट ही है। मनुष्यगतिद्विक, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके बन्धक जीव मनुष्य लोकमें ही मारणान्तिक समुद्घात कर सकते हैं और दो श्रायका मारणान्तिक समुद्घातके समय वन्ध नहीं होता, इसलिए इनके उ. अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी होता है, इसलिए उनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू बन जाता है। ३५०. तियेंञ्चोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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