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________________ महाधे श्रणुभागबंधाहियारे उक्क० ० अचों सव्वलो ० । अणु० सव्वलो० । णिरय-देवार० - आहारदुगं उक० अणु० लो० असंखें । मणुसाउ० उ० लो० xiao To l अणु० लो० असंखे० अह च सव्वलोगो वा । णिरयगदि णिरयाणु० उ० अणु० लो० असंखें • छच्चोद्द० । मणुस०-ओरालि०--ओरालि० अंगो०-- वज्जरि०-- मणुसाणु० आदाव० उ० लो० असंखें० अट्ठ चो० । अणु० सव्वलो० | देवग०-देवाणु० उ० खेत्तभंगो० । अणु० छच्चो० ० । एइंदि०१० थावर० उ० अट्ठ-णवच । अणु० सव्वलो० । वेडव्वि० - वेडव्वि०1 अंगो० उ० खेत्तभंगो। अणु० बारह चो० । सुहुम० - अप० साधार० उ० लो० असंखे० सव्वलो० | अणु० सव्वलो० । तित्थ० उ० खैतभंगो । अणु० [ लोग० ] असं खे अव चोद० । १५२ अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू, क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सत्र लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नरकायु, देवायु और आहारकद्विकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोक असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यगति, श्रदारिकशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्क, वज्रर्षभनाराच संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और तपके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवगति और देवगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रियजाति और स्थावर के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रयिक याङ्गोपाङ्गके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण के उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट अनुभाग के वन्धकं जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और तीर्थङ्करके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोक असंख्यातवें भाग और कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ - पाँच ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध चारों गतिके मिध्यादृष्टि जीव उत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंसे करते हैं। इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और वैक्रियिककाययोगमें बिहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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