SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फोसणपरूवणा १५१ णिमि०-दोगो० ज० अज० सव्वलो। [मणुसाउ० ज० अज० ओघं । ] पत्तेय. बादरपुढविभंगो । कम्मइ० अणाहारए ति मूलोघं । सेसाणं णिरयादीणं याव सण्णि त्ति ज० अज० लोगस्स० असंखें। एवं खेत्तं समत्त । ३४८. फोसणं दुविह-जह० उक्क० । उक्क० पगदं। दुवि०-श्रोघे० आदे० । ओघे० पंचणा०--णवदंस०-असादा०--मिच्छ०--सोलसक०--पंचणोक०-तिरिक्ख०-हुंड०-अप्पसत्य०४-तिरिक्खाणु०--उप-अथिरादिपंच०-णीचा०-पंचंत० उक्क० अणुभागबंधगेहि केवडि खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखें, अह-तेरह चोदसभागा वा देसूणा । अणुक्क० अणुभागबंध० के० फोसिदं० १ सव्वलोगो। सादा०-तिरिक्खाउ०-चदुजा०-तेजा-[क०-] समचदु०--पसत्थ०४-अगु०३-उज्जो०-पसत्थ०--तस०४-थिरादिछ०--णिमि०-उच्चा० उ० लो० असंखें । अणु० सव्वलो० । इत्थि०-पुरिस०--चदुसंठा०-पंचसंघ०--अप्पसत्थवि०-दुस्सर० उक्क० अणुभा० अह-बारह चोद० । अणु० सव्वलो० । हस्स-रदि संहनन, प्रशस्त वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, दो विहायोगति, बस-स्थावरादि दस युगल, निर्माण और दो गोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। मनुष्यायुके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र ओषके समान है । प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवोंका भङ्ग बादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंका भङ्ग मूलोधके समान है । नरकगतिसे लेकर संज्ञी तक शेष मार्गणाओंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवो का क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। विशेषार्थ-यहाँ जितनी मार्गणाएँ कही हैं उन सबमें अपने अपने क्षेत्र और स्वामित्वका विचारकर अपनी अपनी प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवो का क्षेत्र ले आना चाहिए। इस प्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ। ३४८. स्पर्शन दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, तिर्यश्चगति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, तिर्यश्चायु, चार जाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण और उच्चगोत्र के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त बिहायोगति और दुःस्वरके उत्कृष्ट १. ता० प्रती एवं खेत्तं समत्तं इति पाठो नास्ति । २. ता. पा. प्रत्योः पंचसंठा० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy