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________________ खेत रूवा १४६ O सुभग० - दोसर ० - आदें - - जस० ज० अजे० लोग० संखें । मणुसाउ०- मणुसग ०-मणुसाणु०-उच्चा० ज० अज० लो० असंखे० । सव्वसुहुमाणं सव्वपगदीणं ज० अज० सव्वलो ० ० । णवरि मणुसाउ० ओघं । 0 ३४६. पुढ० - आउ० पंचणा ० णवदंस० - मिच्छ० - सोलसक० णवणोक ० -ओरा०तेजा ० क० - ओरालि० अंगो०-पसत्यापसत्य०४ -- अगु०४ - आदाउज्जो ० णिमि० पंचंत० ज० लो० असंखें, अज० सव्वलो० । सादासाद० - तिरिक्खा उ० -दोगदि-पंचजादि-बस्संठा० - वस्संघ० - दोआणु० - दोविहो०- तसादिदसयुगल- दोगो ० ज० अज० सव्वलो ० । मणुसाउ० [ज० अज० ओघं । ] बादरपुढ०-- आउ० पंचणा० णवदंस०-मिच्छ०सोलसक० - सत्तणोक ० - ओरा ० -- तेजा ० क ० - पसत्थापसत्थ०४ - अगु० -- णिमि० - पंचंत ० ज० लो० असंखें, अज० सव्वलो० । सादासाद ० - तिरिक्ख० एइंदि० - हुंड० - तिरिक्खाणु०--थावर-- मुहुम ०--पज्ज० - अपज्ज० पत्ते ० - साधार० - थिराथिर -सुभासुभ--दूभगअणादे०- - अजस०-णीचागो० ज० ज० सव्वलो० ! सेसाणं ज० अज० लो० असंखे० । बादरपुढ० आउ०पज्ज० मणुसअपज्जत्तभंगो । वादरपुढ० - आउ० अपज्ज० पंचणा० और यशः कीर्तिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है । मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सब सूक्ष्म जीवोंमें सब प्रकृतियों के जघन्य और भजघन्य अनुभाग बन्धक जीवों का सब लोक क्षेत्र है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका भंग भोधके समान है। ३४६. पृथिवीकायिक और जलकायिक जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, श्रदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, श्रदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, तप, उद्योत, निर्माण और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवका क्षेत्र लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यखायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो श्रानुपूर्वी, दो विहायोगति, त्रसादि दस युगल और दो गोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । मनुष्यायुके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र के समान है । बादर पृथिवीकायिक और बादर जलकायिक जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, श्रदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, निर्माण और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यगत्यानुपूर्वी, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशःकीति और नीचगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजधन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त और बादर जलकायिक पर्याप्त जीवोंमें मनुष्य १. श्रा० प्रतौ जस० अज० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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