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________________ ७२ महाबंध अणुभागबंधाहियारे ज० जह० एग०, उक्क छावट्ठि० देस्र० । अज० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । आउ० जह० वेदणीयभंगो । अज० ओघं । गोद० जह० णत्थि अंतरं । ०-णामा० १६७. उवसम० घादि०४ - गोद० णत्थि अंतरं । अज० ओघं । वेद ० जह० अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० । १६८, सासणे घादि०४- गोद० जह० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क बेसम० । वेद० - आउ०-णामा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छियासठ सागर है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । आयु कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका भंग वेदनीय कर्म के समान है । अजघन्य अनुभागबन्धका भंग के समान है । गोत्र कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । विशेषार्थ - जो वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सर्वविशुद्ध अप्रमत्तसंयत होता है, उसीके चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए यहाँ चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धके अन्तरका निषेध किया है। तथा इसके चार घातिकर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय होनेसे यहाँ अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय कहा है। यहाँ वेदनीय और नामकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामोंसे होता है । यतः ये परिणाम कमसे कम एक समय के अन्तरसे और अधिक से अधिक कुछ कम छियासठ सागर के अन्तरसे उपलब्ध हो सकते हैं, इसलिए इन दोनों कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछकम छियासठ सागर कहा है । इनके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है, यह स्पष्ट ही है । यहाँ गोत्र कर्मके जघन्य अनुभागका बन्ध मिध्यात्वके श्रभिमुख हुए जीवके हो सकता है, इसलिए इसके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धके अन्तरका निषेध किया है। शेष कथन सुगम है । १६७. उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल ओघ के समान है । वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ - उपशम सम्यग्दृष्टिके चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध उपशमश्रेणिमें चढ़ते समय और गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध मिध्यात्व के अभिमुख होनेपर होता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागबन्ध के अन्तरकालका निषेध किया है । वेदनीय और नामकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामोंसे होता है। ये परिणाम कमसे कम एक समय अन्तरसे और अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त के अन्तर से सम्भव हैं, इसलिए तो इनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। तथा इनका जघन्य अनुभागबन्ध कमसे कम एक समयतक और उपशान्तमोह गुणस्थानकी अपेक्षा अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त कालतक नहीं होता, इसलिए इनके अजघन्य अनुभागबन्धका भी जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है । १६८. सासादनर्सम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्र कर्मके जधन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । श्रजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर समय है । वेदनीय, आयु और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य अनु For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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