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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे जह० एग०, उक. बेसम। वेद०-णामा० जह• जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि। अज० जह• एग०, उक्क. चत्तारि सम । आउ० विभंगभंगो। गोद० णिरयोघं । णील-काऊणं धादि०४-वेद-णामा० किण्णभंगो। गोद० जह० जह० एग०, उक० अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क० बेसम०। १६३. तेउ० धादि०४ जह• गत्थि अंतरं । अज० ज० एग० । सेसाणं सोधम्मभंगो। एवं पम्माए वि । णवरि वेद०-आउ०-णामा०-गोदा० सहस्सारभंगो। सुक्काए घादि०४ जह• अज० ओघ । वेद०-णामा० जह• जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं सा० सादि० । अज० ओघं । आउ• गोदा० गवगेवजभंगो। अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। आयुकर्मका भङ्ग विभङ्गज्ञानी जीवोंके समान है गोत्रकर्मका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है। नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्म, वेदनीय और नामकर्मका भङ्ग कृष्णलेश्याके समान है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। विशेषार्थ-कृष्णलेश्यामें चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध सम्यग्दृष्टिके सर्वविशुद्ध परिणामोंसे होता है। ये परिणाम एक समयके अन्तरसे भी हो सकते हैं और कुछ कम तेतीस सागरके अन्तरसे भी ही सकते हैं। यही कारण है कि यहाँ इन चार घातिकर्मोके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर कहा है। इनके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है, यह इसीसे स्पष्ट है कि इनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय है। वेदनीय और नामकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध जघन्य बन्धयोग्य मध्यम परिणामवाले किसी भी जीवके हो सकता है। ये परिणाम एक समयके अन्तरसे भी हो सकते हैं और साधिक तेतीस सागरके अन्तरसे भी। यही कारण है कि यहाँ इन दोनों कर्मोके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर कहा है। यहाँ नील और कापोत लेश्यामें चार घातिकर्म वेदनीय और नामकर्मका भङ्ग कृष्णलेश्याके समान कहा है सो इसका अभिप्राय इतना ही है कि कृष्णलेश्याके समान नील और कापोतलेश्याके कालको जानकर अन्तरकाल ले आना चाहिए । शेष कथन सुगम है। .. १६३. पीतलेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। शेष कोका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंमें भी जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मका भङ्ग सहस्रार कल्पके समान है। शुक्ल लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तरकाल ओघके समान है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल ओघके समान है। आयु और गोत्रकर्मका भङ्ग नौवेयकके समान है। विशेषार्थ-पीतलेश्यामें अप्रमत्तसंयतके सर्वविशुद्ध परिणामोंसे चार घातिकर्मोका जघन्य अनुभागवग्ध होता है। ऐसे परिणाम पीतलेश्याके काल में दो बार सम्भव नहीं है। इससे यहाँचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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